For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;


कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;


वो आये तो ख़िज़ां में भी एक ख़ुशगवारी थी,
नहीं हैं वो तो मुझको इन बहारों में भी सेहरा है;


मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


हुई मय से जो तौबा यार वाइज़ बन गया था,
जो देखा जा के तो जाना वो, न सुधरा था न सुधरा है;


कभी ख़्वाबों में धुंधली सी कोई तस्वीर बनती है,
हुए उनसे मुख़ातिब जाना, यही हसीन चेहरा है;


थी जो गफ़लत मुझे के ये हक़ीक़त है हसीं कितनी;
खुली जो आँख पाया कोई, ख़्वाब सुनहरा है;


चले करने बयां अलफ़ाज़ में उन लम्हात को 'वाहिद',
समझ आया उन्हें ये शख़्स, अंधा-गूंगा-बहरा है;

Views: 971

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 12:45pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार वीनस जी! :))

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 12:37pm

मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


गहरी चोट खाई है शायर ने :)))

दर्द की गहराई का कुछ पता नहीं चल रहा है ...
बहुत बढ़िया शेर है

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:51pm

आभार संदीप जी| और इस मंच पर स्वागत भी| :)

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:50pm

प्रिय जवाहर भाई,

आप अपने ऊपर क्यूँ ले रहे हैं मैं तो हूँ आपके लिए| :) ये तो अपनेआप को कहा था| आपका शुक्रगुज़ार हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:48pm

आदरणीय राजीव जी,

आपकी दाद सहर्ष क़ुबूल है| हार्दिक आभार,

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 18, 2012 at 5:40am

तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने यह गजल बनाया! प्रिय वाहिद भाई, समझ में आया कि मैं अंधा गूंगा बहरा हूँ!...

बहुत ही मजेदार! होते हैं आपके अल्फाज. उर्दू का मुझे बहुत ही कम ज्ञान है फिर भी लगता जानदार है! 

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 8:52pm

बहुत सुन्दर गजल संदीप जी.बिलकुल तरन्नुम में लिखा है.एक-एक शेर को दाद देने को जी चाहता है.

मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों, कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है

क्या खूब पंक्तियाँ हैं.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 17, 2012 at 6:58pm

आदरणीय अजय जी,

आपने ग़ज़ल के एक शेर को भी सराहा तो लिखना सार्थक हुआ| अभी सीख रहा हूँ धीरे-धीरे सुधार आता जाएगा| हार्दिक आभार,

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 17, 2012 at 4:15pm

सुंदर प्रस्तुति ..वाह कितनी गहराई है प्यार में...८ वी पंक्ति  में..बखूबी बयां किया है ..बधाई संदीप जी

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 16, 2012 at 7:19pm

आभार गुरुवर...यहाँ के ऑपरेशन्स बेहद सरल हैं| बहुत ही जल्दी समझ जाएँगे आप|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
22 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service