वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.
हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..
नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.
कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..
जैविक खेती है भली, धरती हो आबाद.
गोबर को अपनाइए, बचे रसायन खाद..
अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल.
छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल..
इसे आज ही त्यागिये, कभी न होती नष्ट.
पोलिथिन या प्लास्टिक, धरती को दे कष्ट..
कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त.
पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त..
दूध पिलाते जो हमें, वही बने आहार.
इनसे कैसी दुश्मनी, क्यों होता संहार..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
स्वागत है कुमार गौरव जी, इन दोहों को पसंद करने व सराहने कि लिए आपके प्रति हार्दिक आभार ...
आदरणीय अम्बरीश जी
सादर नमस्कार,
इसे आज ही त्यागिये, कभी न होती नष्ट.
पोलिथिन या प्लास्टिक, धरती को दे कष्ट.
प्रकृति संरक्षण की जबरदस्त वकालत करते सुन्दर दोहे.वाह!
कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त.
पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त..
और दुर्लक्ष्य करने का परिणाम भी दोहे में .वाह!
कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त.
पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त..
हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..
इनसे कैसी दुश्मनी, क्यों होता संहार..
वास्तव में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, और दूध देती गायों जैसे
चौपाया पशुओ का संहार कर हम अपनी ही बर्बादी कर रहे है |
इन पर सुन्दर दोहों के रूप में ध्यान आकृष्ट करने हेतु आप
हार्दिक बधाई के पात्र है,भाई अम्बरीश श्रीवास्तव जी|
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