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हो गया है मेरा शहर जन्नत

शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत

जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     
हो गया है मेरा शहर जन्नत

राह मुश्किल भरी रही लेकिन 
आपके साथ था सफ़र जन्नत

ख्वाब क्या और क्या हकीकत में
नूर देखा हुई नज़र जन्नत

'दीप' वीरां लगा जहाँ तुझ बिन
इश्क की याद थी मगर जन्नत 

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 9:16am

आदरणीय हरविंदर जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 11, 2012 at 7:06am

सुन्दर रचना मित्र संदीप जी.......बधाई स्वीकारें..........

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 10, 2012 at 6:57pm

अच्छी प्रस्तुति दीप जी! क्या कहन है वाह-वा! ! :-)

मक़ते के उला की तक़तीअ कर लें मात्रा गड़बड़ है!

'दीप वीरां लगा जहाँ तुझ बिन' या 'दीप वीरां लगा ये जग तुम बिन' से बात बन जाएगी! हार्दिक बधाईयां..!!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 10, 2012 at 6:39pm
संदीप भाई जी!आपकी गजल बहुत उम्दा है।छोटी बह्र किन्तु गम्भीर बात और वो भी सलीके से।बहुत खूब।हार्दिक बधाई।मुझे लगता है जैसे आप गजल के लिए ही बने हैं।
Comment by seema agrawal on September 10, 2012 at 5:39pm

बहुत खूब बहुत खूब संदीप जी आपकी गज़लें तो कमाल कर रहीं हैं ....सभी अश'आर माशाल्लाह 

मुबारकबाद .......

Comment by Harvinder Singh Labana on September 10, 2012 at 5:14pm

जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     
हो गया है मेरा शहर जन्नत

 

Behad Khoobsurat Deep Sahab..

 

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