दोपहर शाम शब् सहर जन्नत
हर घडी आ रही नज़र जन्नत
वक्ते फुरकत लगा जहन्नम सा
खंडहर हो गया है घर जन्नत
भूलना आपको हुआ मुश्किल
याद कर कर के हर पहर जन्नत
जिन्दगी किस तरह जियें तुझको
मौत लगने लगे अगर जन्नत
वो कदम आपके पड़े थे जहां
आज भी है वो हर डगर जन्नत
एक तस्वीर हम लिए फिरते
जुस्तजू से हुआ सफ़र जन्नत
"दीप" चुपचाप वो हुए रुखसत
चीखता रह गया शहर जन्नत
संदीप पटेल "दीप"
Comment
जिन्दगी किस तरह जियें तुझको
मौत लगने लगे अगर जन्नत ---वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही काबिले तारीफ है पर इस शेर ने तो महफ़िल लूट ली दाद कबूल करें
वो कदम आपके पड़े थे जहां
आज भी है वो हर डगर जन्नत ,खूबसूरत गजल संदीप जी ,बधाई
संदीप जी, बड़ी प्यारी सी ग़ज़ल लगी, कहन जबरदस्त, सभी शेर एक से बढ़कर एक, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |
अरे वाह फिर से जन्नत
जिन्दगी किस तरह जियें तुझको
मौत लगने लगे अगर जन्नत ............अब ये तो वाह वाली बात नहीं पर अच्छा लिखा
एक तस्वीर हम लिए फिरते
जुस्तजू से हुआ सफ़र जन्नत .....सच्चाई तो वो भी है पर भाई हम तो ऐसी ही बातों की पैरवी करते हैं
दिली मुबारक बाद संदीप जी
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