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रामकरन अपनी पत्नी मुनिया से बोले-"श्यामा की अम्मा हमार करेजा तौ मुंहके आवत बाय।श्यामा 14 साल की हुइ गई ओकर सादी करेक हा।"
"हां हो हमहुक इहै चिंता खाये जात बाय।चिट्ठी पाती भरेक पढ़िये चुकी है,अउर इ जमाना बहुत खराब बाय,पता नाहीं कहां ऊंचे नीचे पैर परि जाय,समाज में नाक कटि जाय।............तौ कहूं,कवनो लरिका देख्यो सुनयो नाई?"-मुनिया ने प्रश्न वाचक दृष्टि से देखते हुए कहा।
"रमई के लरिका मुनेसर हैं बम्मई कमात हैं औ उमरियो ढेर नाई 24-25 साल होई।"-रामकरन ने कहा।
श्यामा पास ही आंगन में रोटी सेंक रही थी।वह बोल पड़ी-"मुझे नहीं करनी है शादी,अभी तो मेरी पढ़ने की उम्र है।और आप सबसे मैं पढ़ने का पैसा भी नहीं लूंगी।सरकार लड़कियों के पढ़ने की व्यवस्था करती है।मुझे पढ़कर आई.ए.एस. बनना है।रही बात ऊंच-नीच पैर पड़ने की तो आप निश्चिंत रहें और अपनी बेटी पर विश्वास रखें।"

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 12, 2012 at 9:26am

ये विषय निबंध हेतु उपयुक्त हो सकता है, पर कथा के लिए नही!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 9:18am

भाई विन्ध्येश्वरी जी, आपने लघुकथा रचने का बेहतर प्रयास तो किया है जिसके लिए बधाई ...परन्तु आदरणीय बागी जी की बात भी सही है ...इस बारें में हम सभी को अभी बहुत कुछ जानना शेष है ...इसके लिए ओबीओ पर पूर्व में ही कई लघुकथाएं पोस्ट की गयी हैं कृपया उन्हें पढ़ें ! सस्नेह


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 11, 2012 at 10:26pm

यह हठ नहीं धृष्टता है |

///"इतनी सारी प्रगति के बाद भी आज कुछ लोग पुराने विचारों में ही जी रहें हैं।लेकिन कुछ करने की इच्छुक एवं साहस की धनी लड़कियों को अपनी बात अपने पालक के समक्ष रखना चाहिए और उन्हें जागरूक होना चाहिए///

तो इसमे क्या विशेष है जो इसको कथा का रूप दिया जाय ?

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 11, 2012 at 10:17pm
आप उत्तरदायित्व बोध से हटने का का प्रयास कर रहें हैं लेकिन मैं हठी अनुज हूं।बच नहीं पायेगें बचाने से।
रही बात कथा में कथ्य की तो मैं कहना चाह रहा हूं कि-
"इतनी सारी प्रगति के बाद भी आज कुछ लोग पुराने विचारों में ही जी रहें हैं।लेकिन कुछ करने की इच्छुक एवं साहस की धनी लड़कियों को अपनी बात अपने पालक के समक्ष रखना चाहिए और उन्हें जागरूक होना चाहिए।(यही जागरूकता ही उन्हें उनकी दैन्य कूप मण्डूक स्थिति से निकाल सकती है।)"
सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 11, 2012 at 9:53pm

ना ना विन्धेश्वरी भाई, मुझे तो बस शिष्य ही रहने दीजिये, गुरु बहुत ही ऊँचा पद है, आप स्वयम अपनी कथा को पढ़े और यह बताये कि इस कथा के माध्यम से क्या कहना चाह रहे है, क्या विशेष कथ्य है ?

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 11, 2012 at 9:33pm
आदरणीय बागी जी!आप पाठक से आगे भी बहुत कुछ हैं।जैसे एक श्रेष्ठ गुरु और मेरे बड़े भाई।इस नाते आप यहीं पर छुट्टी नहीं ले सकते?अगर आपको लगा तो जाहिर है कि यह आपका कोरा भ्रम नहीं है।पूरी बात स्पष्ट करने की अनुकम्पा करें।
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 11, 2012 at 9:21pm

विन्धेश्वरी जी, यदि आपको लगता है कि कथा है तो बढ़िया है, इसमे मुझे क्या कहना ? एक पाठक का हक तो आप मुझसे नहीं ही छीन सकते |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 11, 2012 at 9:09pm
आदरणीय शुभ्रांशु जी हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 11, 2012 at 9:06pm
आदरणीय बागी जी!क्या इस रचना में कथा ही नहीं?
अन्यथा मत लीजिएगा मुझे नहीं लगता कि इसमें कथा नहीं है।और यदि मैं गलत हूं तो कृपया कथा के गुणधर्मों की विवेचना का कष्ट कीजिएगा।
सादर।
Comment by Shubhranshu Pandey on September 11, 2012 at 8:43pm

सरकार की योजनाओं को दर्शाती एक बढिया लघुकथा.....बधाई...

कृपया ध्यान दे...

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