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इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर  

मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर

 

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं

ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

 

गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा

आलिम के सामने न जहालत की बात कर

 

अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला

सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर

 

'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा 

जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर

--अम्बरीष श्रीवास्तव  

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 1:29pm

स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! हार्दिक धन्यवाद आदरणीय .....

आप जैसे विद्वान की कलम से इस ग़ज़ल की कहन की तारीफ़ पाकर यह मेहनत सफल हुई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 1:22pm

आदरणीय आपकी ग़ज़ल की कहन तो माशाल्लाह सीधे दिल में उतर जाने वाली है. जैसे

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर

वाह वाह !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 11:51am

स्वागत है आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी. आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हो गया है ....बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद मित्रवर |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 11:49am

इस शेअर व ग़ज़ल को पसंद करने व सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 12, 2012 at 11:46am

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं

ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

वाह वाह बहुत खूब ......दाद कबूलिये|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2012 at 11:42am

वाह वाह क्या बात है अम्बरीश जी बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल करें 

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं

ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

 जबस्दस्त शेर

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