For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कारगिल युद्ध पर उसे गर्व है? (घनाक्षरी)

कारगिल हार के जो, हार पे ही गर्व करे,
हार जूतियों का उस नीच को पिन्हाइये।
एक से न काम चले, जूता एक और मिले,
भाई एक जोड़ी मेरा, पूरा करवाइये॥
पाक पाप धूर्तबाज, कल बल छल बाज,
कपटी से शांति बात, भूल मन जाइये।
अफजल कसाब ज्यों, मनुजता के शत्रु को,
फांसी पर चढ़ाओ या, तोप से उड़ाइये॥

Views: 802

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 4:57pm
जी बिल्कुल गुरुदेव!
लेकिन मेरे कालेज के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. श्री महेंद्र नाथ पाण्डेय जी कहा करते थे-साहित्य रोगी जिज्ञासा खुजली, और बात की चुगली का कोई इलाज नहीं,बस एक इलाज है,साहित्य पढ़ने को मिल जाये,जिज्ञासा शांत हो जाये,तथा चुगली वाली बात कह दी जाये।
सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 4:30pm

खुजली का इलाज पिछले तीस-बत्तीस सालों से सुन रहा हूँ कि जालिमलोशन से होता है. .. :-)))

हा हा हा हा.. . .    खैर मज़ाक नहीं..

भाई संदीप जी का सुझाव यथोचित है, भाईजी.

और.. . हममें से अधिकांश आपही की नाव के सहयात्री हैं. अपन-अपनी दुनिया में होकर भी साहित्यकर्म में निरत..  :-))

शुभ-शुभ

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 4:18pm
संदीप भाई जी! सराहना के लिये आभार।आपकी पंक्ति ग्रहण करता हूँ।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 4:16pm
गुरुदेव किसी भी रचना को रचने के बाद मेरे मन में खुजली सी होने लगती है,इसलिये नहीं कि इस पर वाह वाही मिलेगी, बल्कि इसलिये कि इसे और बेहतर कैसे किया जा सकता है।चूंकि //निज कवित्त केहि लाग न नीका।सरस होइ अथवा अति फीका॥//तो मैं आत्ममुग्धता से बचकर गुरुजनों के मार्गनिर्देशन में अपने रचना कर्म को निखारना चाहता हूँ।क्योंकि मेरी पृष्टभूमि साहित्यिक नहीं वरन भौगोलिक है,अत: मेरे अंदर औसत या अंतरानुशासनिकता मानकर चलने की आदत है,जबकि साहित्य शुद्धता की मांग करता है,जो मुझसे अधिक सम्भव नहीं है (प्रयास कर रहा हूँ कि कर सकूँ)।इसे केवल मेरे गुरुजन ही कर सकते हैं।

आपके आदेश को शिरोधार्य करते हुये,संदीप भाई जी की बात का अनुमोदन करता हूँ।क्या उनके द्वारा सुझाये पंक्ति को ग्रहण कर लिया जाये?जैसा आदेश दें।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 4:03pm
आदरणीय जवाहर लाल जी! रचना की सराहना के लिये आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 4:02pm
अरे गुरुदेव! यदि आप अपने शब्द वापस लेंगे तो मुझ शिष्य का क्या होगा? मुझे तो मुशर्रफ से नहीं आप से ही सीखने को मिलता है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 3:42pm

//सच कहूँ तो मैं निर्दोष हूँ, यह सब मुशरर्फ ने ही लिखवाया है।//

हा हा हा .. ..    अब समझ में आया हमें.

हम अपने शब्द वापस लेते हैं.  लिखवाने वाला दोषी.. .   :-)))

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2013 at 3:18pm
आदरणीय आशीष जी! रचना की सराहना के लिये आभारी हूँ।अखबार पढ़ते समय जो भाव मन में उड़े उन्हीं को शब्दबद्ध किया गया हूँ।सच कहूँ तो मैं निर्दोष हूँ, यह सब मुशरर्फ ने ही लिखवाया है।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:42pm

जय हो भाई साहब क्या बात है बहुत ही सुंदर
तत गुरुदेव के कहे से सहमत हूँ
और अंत मे
के पद मे यदि ऐसा हो जाए तो कैसा रहे
फाँसी पे चढ़ाइए या, तोप से उड़ाइए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 1:21pm

इस अधपकुआ व्यंजन का क्यों आग्रह बना ?  भाई यह घनाक्षरी थोड़ा और समय मांग रही थी.

अफजल कसाब ज्यों, मनुजता के शत्रु को, फांसी पर चढ़ाओ या, तोप से उड़ाइये

इस अंतिम पद में मुझे भाषाजन्य असहजपन प्रतीत होता है. कृपया मुझे सही कीजियेगा यदि मैं गलत हूँ.   एक ही आदेशात्मक वाक्य में तुम और आप सर्वनाम भले लुप्त ही सही इकट्ठे आ गये हैं.

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service