For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काम काजी महिलाएं और पूजा का कार्यक्रम !

अभी हाल में मुझे एक उच्च मध्यम वर्ग के यहाँ पूजा (सत्य नारायण भगवान की पूजा) में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ! बड़े अच्छे ढंग से तैयारियां की गयी थी. सफाई सुथराई का भी पूरा पूरा ख्याल रखा गया था. उम्मीद यह थी कि पूजा में बैठने वाले यजमान और उनकी श्रीमती बिना कुछ खाए पूजा में बैठेगें ... पर यह क्या ? सुनने में आया कि सत्यनारायण भगवान की कथा में यह बाध्यता नहीं है. फिर क्या, सभी लोगों ने जमकर इडली और बड़े खाए पंडित जी भी सहभागी बने. उसके बाद पूजा के क्रिया-कलाप प्रारंभ हुए. पंडित जी को कहा गया था कि वे सभी पूजन सामग्री, तथा अपने और पंडिताईन के लिए वस्त्र भी जरूरत और अपनी पसंद के अनुसार अपने साथ ही लेते आयें! 'बिल' का पेमेंट कर दिया जायेगा. ... पंडित जी बड़े ही आज्ञाकारी प्रवृत्ति वाले लगे और सब कुछ उन्होंने यथावत सजा दिया. बीच बीच में यजमान और घर के सदस्यों से कुछ कुछ मांगते और बताते रहे, ताकि धार्मिक माहौल बनाया जा सके! पूजा का स्थान जो घर में निर्धारित स्थान में बनाया गया था ( आज कल फ्लैट्स में भी पूजा स्थान, आधुनिक प्रणाली के हिशाब से बना दिया जाता है). पंडित जी ने उस फ़्लैट के पूजा स्थान को उपयुक्त (बिलकुल सही) बताया, क्योंकि शास्त्र में यही वर्णित है. जबकि उस फ्लैट के सामने वाले फ़्लैट में उसके ठीक विपरीत स्थान पर होना चाहिए ...पंडित जी जब वहां पूजा कराने जायेंगे, तो क्या कहेंगे ? (मुझे नहीं पता)...
सब ब्यवस्था हो जाने के बाद पंडित जी और यजमान के बैठने और पूजन सामग्री अर्पण करने में असुविधा की आशंका हुई, तब कुछ सामान इधर से उधर घिसका कर पंडित जी के लिए उपयुक्त स्थान बनाया गया .... किन्तु यह क्या? पंडित जी ने उस जगह पर पहले ही, पवित्र करने के लिए थोड़ा जल छिड़क दिया था. उसपर आसन बिछाने से आसन को भींगने का डर था. जल को कपड़े से पोंछने के लिए सफाई करने वाली नौकरानी को आवाज लगाई गयी. पर उसने उपस्थिति न दिखाई ... फिर गृह-स्वामिनी ने एक छोटे सूखे कपड़े से जल को सुखाने के लिए फर्श को पोंछने का प्रयास किया ... उस प्रयास में गृह स्वामिनी का साड़ी भी भींग गया, पर जल पूरी तरह से न सूखा ... फिर गृह स्वामिनी की देवरानी ने हिम्मत दिखाई. दूसरे सूखे कपड़े ले आयी, पर आदत न होने के कारण बेचारी का प्रयास भी असफल ही रहा ... फिर गृह स्वामी ने पंखे चलाने का आदेश दिया ... थोड़ी ही देर में ठंढक महसूस होने लगी, इसलिए पंखे को बंद कर दिया गया. फिर इस उम्मीद से कि आसन नहीं भींगेगा, उस गीले जगह पर डाल दिया गया, और पंडित जी को आसीन होने को कहा गया. पंडित जी फिर से वातावरण बनाने में लगे. तबतक मुझे झपकी आ गयी थी.... मैं रात में ठीक से सो नहीं सका था, शायद इस वजह से या नीरसता की वजह से! ... तभी शंख बजने की आवाज सुनायी पड़ी और पता चला कि पहला अध्याय समाप्त हो गया ...अब मैंने कथा सुनने की तरफ ध्यान लगाया और पंडित जी भी मेरी तरफ ध्यान देकर कथा को रोचक बनाने का भरपूर प्रयास करते रहे. मैंने बाकी के चार अध्याय ध्यान से सुने और हवन, आरती आदि में भी भाग लिया. पंडित जी की खासियत यह थी कि हवन सामग्री के अनुसार ही उनके देवताओं की संख्या बढ़ती जाती थी. सभी नाश्ता कर चुके थे इसलिए किसी को भूख या अन्य किसी भी कारण से जल्दी न थी, रविवार का समय था, इसलिए सभी रिलैक्स थे. पंडित जी की घड़ी में अभी दो नहीं बजे थे.(पंडित जी के ही अनुसार दो बजे खाने का समय होता है!) दो बजते ही कथा की सारी विधियाँ समाप्त हो गयी और अब प्रसाद वितरण होने लगा. फल काफी थे और बड़े बड़े भी थे. पेड़े और चरणामृत भी थे. अब प्रसाद को ठीक ठीक सजाने या फलों को काटने का समय नहीं था. इसलिए पंडित जी ने लौटरी सिस्टम लागू किया. जिसके भाग्य में जो आ जाय! .... इस तरह किसी के भाग्य में पेड़े आए, तो किसी के भाग्य में केले. किसी को सेव मिला तो किसी को अनार! पपीते का आकार बड़ा था इसलिए उसे हाथ न लगाया गया. किसी भक्त ने चरणामृत या चूरण से ही संतोष कर लिए ..."असली प्रसाद तो यही है!"
अब पंडित जी को भूख लग गयी थी. उन्होंने ने ही बताया आप लोग भी आइये ... बैठ जाइये एक ही साथ खाना खा लेते हैं. पंडित जी का आदेश भला कौन टाल सकता है? सबों ने छक कर सुस्वादु भोजन का लुत्फ़ उठाया. उधर गृहस्वामिनी की सास अन्दर ही अन्दर कुढ़ रही थी ... कैसा पंडित है, खुद तो खा ही रहा है, सबको साथ बैठकर खाने को कहने लगा. उसे 'खाना खाकर जाइये' कहने की जरूरत नहीं थी!
जेठानी और देवरानी बहुत खुश थी. आज उनलोगों ने कथा का आयोजन करवाया और इतने लोगों को खाना खिलाया. बहुत ही पुण्य-लाभ मिलेगा ... प्रतिदिन ऑफिस जाने आने के क्रम में भगवान को याद रखने का समय ही कहाँ मिलता है? ऑफिस में बॉस की घुड़की और घर में पति का आदेश! सबके साथ सामंजस्य बैठाकर चलना बड़ा मुश्किल काम है! ऊपर से बूढ़ी सास के नखरे ...

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 1, 2013 at 4:27pm

अच्छा आलेख है आज कल सब कुछ बदल गया है तो पूजा के ढंग और पंडित का व्यवहार क्यों नहीं बदलेगा कई जगह तो पंडित की जगह टेप किये हए मन्त्र ही प्ले कर दिए जाते हैं ,बधाई आपको 

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2013 at 2:08pm

भावहीन शुष्क और नीरस होतीं पद्धतियाँ और  वैभव का क्षुद्र प्रदर्शन --- आजके यथार्थ की कटु व्याख्या है आपका यह लेख . साधुवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service