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करूणा के वशीभूत होकर
हृदय ने,पूछा मुझसे यह,
जीवन की निर्जन-बेला में,
तू बता,मुझे कौन है वह?
 विशाल जीवन-सागर में
चलता है साथ तेरे जो,
क्या है कोई इस संसार में,
समझ सके विचार तेरे वो?
हृदय के इस प्रश्न ने,
डाल दिया मुझे सोच में।
फिर मन-ही-मन मैं लगी,
 स्वयं से यह पूछने।
इस विशाल-संसार में होगा
कहीं पर ऐसा कोई क्या?
दुःख-दग्ध और करूणा से पूर्ण,
समझेगा मेरे हृदय की व्यथा।
सोचा है मन में जो कुछ मैंने,
संभव है,वह सत्य हो पाए।
कभी,कहीं जीवन के पथ पर,
राह में 'वो' मुझे मिल जाए।
इस विशाल एकांत जीवन में,
सदा है मुझे जिसकी प्रतीक्षा।
बस यही मेरे व्याकुल हृदय को
देती उसके मिलन की आकांक्षा।
है ज्ञात,संसार में मिलेंगे प्रेमी कई
पर मानो,मुझे कोई अज्ञात है प्रिये।
प्रार्थना है,मेरी सफल हो तपस्या,
मेरा सारा जीवन है उसी के लिये।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

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Comment by Meena Pathak on April 9, 2013 at 3:04pm

बहुत ..... बहुत सुन्दर कविता ... बधाई 

Comment by coontee mukerji on April 9, 2013 at 11:33am

सावित्री जी , आपकी रचना मन को छू गया . मैं पहले अक्सर एक गीत गुनगुनाती थी - 'माझी नैया ढूढे किनारा ' . आज वह गीत मुझे

याद आ गया .आपको मंगल कमनाएँ  सहित .

Comment by बसंत नेमा on April 9, 2013 at 9:59am

बहुत सुन्दर भाव है  कविता के और एक सवाल है सब के लिये क्या वाकई मै आज कोई ऐसा नही है जो किसी के मन के भाव को समझ सके उसकी भावना को मान दे सके , लख लख बधाईया कविता के लिये 

Comment by विजय मिश्र on April 8, 2013 at 6:48pm

" स्वप्न सी सुन्दर कल्पनाओं में बसे महामानव की इस जगती पर प्रतीक्षा और साथ ही एक सुपोषित साकांक्ष मन " ----

सवित्रीजी ! इस सुन्दर सी कविता केलिए बधाई .

Comment by ram shiromani pathak on April 8, 2013 at 6:29pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

रचना अच्छी लगी।

बधाई

 

सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on April 8, 2013 at 6:02pm

bahot khoob......................

Comment by Savitri Rathore on April 7, 2013 at 10:54pm

आदरणीय विजय जी,सादर नमस्कार !
इस सराहना हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 2:49pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

रचना अच्छी लगी।

बधाई

 

सादर,

विजय निकोर

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