ये प्रेम मिलन का गीत नहीं,
विरह का विवशता-गान सही।
आज तुम मेरे मन के मीत नहीं,
तो प्राणों से बिछुड़ी जान सही।
ये नयन तुम्हारी छवि के दर्पण,
तुम नहीं तो अश्रु का स्थान सही।
ये मन तुम्हारी स्मृतियों का आँगन,
तुम नहीं तो पीड़ा का श्मशान सही।
चाहा था तुमसे मैंने केवल गहन प्रेम,
यदि नही तो उपेक्षा और अपमान सही।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक और अप्रकाशित]
Comment
अशोक जी,प्राची जी और गणेश जी,आप सबको मेरा नमस्कार!
आप सभी ने मेरी रचना को पढ़कर सराहा और अपनी अमूल्य राय व्यक्त की,जिसके लिए मैं हृदय से आप सबकी आभारी हूँ तथा अपनी काव्य रचना में गेयता के गुण को लेने एवं मात्रा गणना द्वारा लेखन का प्रयास अवश्य करूँगी।पुनः आभार।
आदरणीय शालिनी जी,विजय जी,सोनम जी,योगी जी,ब्रिजेश जी, सादर नमस्कार!
आप सभी ने मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर मेरा उत्साहवर्धन किया। -बहुत बहुत आभार।
इस सुन्दर प्रयास के लिए बधाई स्वीकारें।
ये नयन तुम्हारी छवि के दर्पण,
तुम नहीं तो अश्रु का स्थान सही।
ये मन तुम्हारी स्मृतियों का आँगन,
तुम नहीं तो पीड़ा का श्मशान सही।
चाहा था तुमसे मैंने केवल गहन प्रेम,
यदि नही तो उपेक्षा और अपमान सही।
सुन्दर
आदरणीया बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना बहुत बहुत बधाई स्वीकारें वरिष्ठ जनो द्वारा दी गयी सलाह पर काम करें फिर रचनाओं का निखार देखें.
प्रेममय हृदय की सर्वस्वीकार्यता पर सुन्दर अभिव्यक्ति....
धीरे धीरे मात्रा गणनानुसार भी रचना लेखन पर प्रयास कीजिये प्रिय सावित्री जी
शुभेच्छाएँ
चाहा था तुमसे मैंने केवल गहन प्रेम,
यदि नही तो उपेक्षा और अपमान सही।......ये दो लाइन्स बहुत अछि लगी .....अछि रचना हेतु बधाई आदरनीय सावित्री जी
आदरणीया सावित्री राठौर जी, भावों का सम्प्रेषण ठीक है किन्तु काव्य दृष्टि से गेयता का होना भी आवश्यक है, बधाई इस प्रस्तुति पर ।
आदरणीया सावित्री जी:
बहुत ही मार्मिक भावनाओं से सजाया है आपने इस रचना को।
बस, लिखते रहिए।
शुभकामनाएँ।
विजय निकोर
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें
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