For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जीतने तक उड़ान जिंदा रख

बहर : २१२२ १२१२ २२

----------------------------------

बाजुओं की थकान जिंदा रख

जीतने तक उड़ान जिंदा रख

 

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं

है जो खुद पे गुमान जिंदा रख

 

तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं

वो पुराना मकान जिंदा रख

 

बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ

तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख

 

नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ

एक ऐसी दुकान जिंदा रख

 

जान तुझमें ये डाल देंगे कभी

नाक, आँखें व कान जिंदा रख

---------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 613

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 9:23pm

बहुत बहुत शुक्रिया वीनस भाई। आपके समर्थन से बल मिलता है।

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 12:37am

बाजुओं की थकान जिंदा रख

जीतने तक उड़ान जिंदा रख.....वाह वा क्या शानदार मतला हुआ है, ढेरों दाद ...
 

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं

है जो खुद पे गुमान जिंदा रख... यह शे'र भी दिल को भा गया भाई ...

पुराने मअयार को काइम रखती इस ग़ज़ल के लिए मुबारकां

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

बहुत बहुत शुक्रिया MAHIMA जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

धन्यवाद Rajesh Kumar Jha जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:33am

बहुत बहुत धन्यवाद Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 4, 2013 at 12:32am

शुक्रिया vijay nikore जी

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2013 at 11:32pm

होंसला जगाती गजल ... के लिए बहुत-२ बधाई आदरणीय

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:05pm

बहुत ही बढि़या लगी आपकी ये प्रस्‍तुति, सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 3, 2013 at 2:50pm

behtareen sher hain..aaj pahlee baar aapse rubru hone ka mauka mila ...sadar badhayee ke sath 

Comment by vijay nikore on June 3, 2013 at 7:20am

 

बहुत ही लाजवाब शेर हैं।

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी शुक्रिया आ और गुणीजनों की टिप्पणी भी देखते हैं"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। छठा और…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय आज़ी तमाम साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, ग़ज़ल अभी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अनजान कब समन्दर जो तेरे कहर से हम रहते हैं बचके आज भी मौजों के घर से हम कब डूब…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 तूफ़ान देखते हैं गुजरता इधर से हम निकले नहीं तभी तो कहीं अपने घर से हम 1 कब अपने…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निकले न थे कभी जो किनारों के डर से हमकिश्ती बचा रहे हैं अभी इक भँवर से हम । 1 इस इश्क़ में जले थे…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए और दिये गये मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"चार बोनस शेर * अब तक न काम एक भी जग में हुआ भला दिखते भले हैं खूब  यूँ  लोगो फिगर से हम।।…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अब और दर्द शे'र में लाएँ किधर से हम काग़ज़ तो लाल कर चुके ख़ून-ए-जिगर से…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सपने दिखा के आये थे सबको ही घर से हम लेकिन न लौट पाये हैं अब तक नगर से हम।१। कोशिश जहाँ ने …"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service