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पहली बरसात में! (दोहे -जवाहर)

पुष्प वाटिका बीच मुदित, बाला मन को मोह 
सुमन पंखुरी सुघर मृदुल , श्यामा तन यूँ सोह!

पनघट पर सखिया सभी, करत किलोल ठठाहि ,
छलकत जल से गागरी, यौवन छलकत ताहि!

पुष्प बीच गूंजत अली, झन्न वीणा के तार .
तितली बलखाती चली, कली ज्यों करे श्रृंगार!

पीपल की पत्तियां भली, मधुर समीरण साथ,

देखत लोगन सुघर छवी, हिय हिलोर ले साथ.

पवन चले जब पुरवाई, ले बदरा को साथ 
मन विचलित गोरी भई, आंचल ढंके न माथ .

आदरणीय गुणीजन मैंने थोड़ा सुधार कर पुन: पोस्ट किया है, साथ ही दोहा विधान में भी इसे पोस्ट किया है कृपया गुण दोष जरूर बताएँ!

पुष्प वाटिका बीच मुदित, बाला मन को मोह
सुमन पंखुरी सुघर मृदुल , श्यामा तन यूँ सोह!


पनघट पर सखिया सभी, करत किलोल ठठाहि ,
छलकत जल से गागरी, यौवन छलकत ताहि!

पुष्प बीच अली कै गुंजन, ज्यों वीणा के तार .
तितली बलखाती चलै, कली ज्यो करे श्रृंगार!

पीपल की पत्तियां भली, मधुर समीरण साथ,
देखत छवि लागे सुघर, हिय हिलोर ले साथ.

पवन चले जब पुरवाई, ले बदरा को साथ
गोरी मन विचलित भई, आंचल ढंके न माथ .

(मौलिक व अप्रकाशित )

 -जवाहर

04 जून' 13

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Comment

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Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 10:47pm
बधाई आदरणीय जवाहर लाल जी!

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