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"क्या ये खबर सही है कि एकाध दिन में दंगे शुरू होने वाले हैं ?"
"बिलकुल सही सुना भाई, खबर एकदम पक्की है." 
"तो फिर क्या प्रोग्राम बनाया ?"
"सोच रहा हूँ कि इस दफा उनकी पार्टी में शामिल हो जाऊं."

"अबे तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया ? बेगानों का साथ देकर अपनों से गद्दारी करेगा? 
"वो साले बेगाने ज़रूर हैं, लेकिन दिहाड़ी भी तो डबल देते हैं."

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:59pm

रचना को समय देने और पसंद फरमाने के लिए आपका आभारी हूँ भाई बृजेश नीरज जी. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:58pm

दिल से शुक्रिया भाई केवल प्रसाद जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:57pm

लघुकथा पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शुभ्रांशु भाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:57pm

लघुकथा पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया शुभ्र शर्मा जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:54pm

रचना को समय देने और पसंद करने के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ आद० गिरिराज भंडारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:53pm

दिल से धन्यवाद सोनम सैनी जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:53pm

सादर धन्यवाद अन्नपूर्णा जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:50pm

भाई अरुन शर्मा अनंत जी, रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद.  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 31, 2013 at 3:47pm

लघुकथा के मर्म तक पहुँचने के लिए ह्रदय ताल से आपका आभार आद० राजेश कुमारी जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 4:06am

सच! पैसों की खातिर इंसान किसी भी हद तक जा सकता है, फिर चाहे अपने हो या बेगाने,

आदरणीय योगराज जी, कम शब्दों में बहुत कुछ कहने वाली सशक्त लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें

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