अगर है एक तो है एक हिंदुस्तान हिंदी सेI
ज़माने में बनी है हिंद की पहचान हिंदी सेI
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ये दुनिया एक ही कुनबा सदा इसने सिखाया है,
मोहब्बत का सदाक़त का मिला वरदान हिंदी सेI
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जो तुलसी जायसी के लाल, अंग्रेजी के अनुयायीI
उन्हें तुम दूर ही रखना मेरे भगवान हिंदी सेI
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तुम हिंदी काव्य को रसहीन होने से बचा लेना,
नहीं तो फिर न निकलेगा कोई रसखान हिंदी सेI
ये उर्दू फ़ारसी अब तक दिवंगत हो गई होतीं,
मिला भारत में दोनों को…
Added by योगराज प्रभाकर on September 14, 2021 at 11:00am — 10 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on May 7, 2017 at 7:30pm — 18 Comments
वह अपनी धुंधली आँखों से बीत रहे वर्ष की पीठ पर बने रंग बिरंगे चित्रों को बहुत गौर से निहार रही थी, वह अभी उनमें छुपे चेहरों को पहचानने का प्रयास ही कर रही थी कि सहसा वे चित्र चलने फिरने और बोलने लग पड़ेI
"माँ जी! कितनी दफा कहा है कि इन बर्तनों को हाथ मत लगाया करोI"
नये टी सेट का कप उससे क्या टूटा उसके घर में कलेश ने पाँव पसार लिए थेI
अगले दृश्य में नए साल की इस झांकी को होली के रंगों ने ढक लियाI
"बेटा ये बहू की पहली होली है, तो इस बार त्यौहार धूमधाम से..."…
Added by योगराज प्रभाकर on January 1, 2017 at 12:01am — 14 Comments
अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI
Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments
तुम क्या हो?
किसी समुद्री मछली के उदर में
किसी ब्रह्मचारी के पथभ्रष्ट शुक्राणु का अंश मात्र
किन्तु उसका निषेचन?
अभी बहुत समय बाकी है उसमे
बहुत.....
हे प्रिये!
बुरा नहीं स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझना
अमरत्व का दिवा-स्वप्न भी बुरा नहीं
किन्तु समझना आवश्यक है
यह जान लेना आवश्यक है कि
अमर होने ने लिए मरण आवश्यक है
मरण हेतु जन्म अति आवश्यक
फिर तुम्हें तो अभी जन्म लेना है
जन्म लेने से पूर्व…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on December 14, 2016 at 12:42pm — 7 Comments
2122 1212 22/112
Added by योगराज प्रभाकर on October 17, 2016 at 11:24am — 25 Comments
घर का माहौल ग़मगीन था, डॉक्टर ने दोपहर को ही बता गया था कि माँ बस कुछ देर की ही की मेहमान हैI माँ की साँसें रह रह उखड रही थीं, धड़कन शिथिल पड़ती जा रही थी किन्तु फिर भी वह अप्रत्याशित तरीके से संयत दिखाई दे रही थीI ज़मीन पर बैठा पोता भगवत गीता पढ़ कर सुना रहा था, अश्रुपूरित नेत्र लिए बहू और बेटा माँ के पाँवों की तरफ बैठे सुबक रहे थेI
Added by योगराज प्रभाकर on October 9, 2016 at 10:00am — 25 Comments
पिछले कई दिनों से घर में एक अजीब सी हलचल थीI कभी नन्हे दीपू को डॉक्टर के पास ले जाया जाता तो कभी डॉक्टर उसे देखने घर आ जाताI दीपू स्कूल भी नहीं जा रहा थाI घर के सभी सदस्यों के चेहरों से ख़ुशी अचानक गायब हो गई थीI घर की नौकरानी इस सब को चुपचाप देखती रहतीI कई बार उसने पूछना भी चाहा किन्तु दबंग स्वाभाव मालकिन से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुईI आज जब फिर दीपू को डॉक्टर के पास ले वापिस घर लाया गया तो मालकिन की आँखों में आँसू थेI रसोई घर के सामने से गुज़र रही मालकिन से नौकरानी ने हिम्मत जुटा कर पूछ…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on June 1, 2016 at 12:51pm — 17 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on March 16, 2016 at 10:30am — 22 Comments
"ये मिठाई कहाँ से आई जी ?" अपने खेत के किनारे चारपाई पर चुपचाप लेटे शून्य को निहारते हुए पति से पूछाI
"अरी, वो गुलाबो का लड़का दे गया था दोपहर को।" उसने चारपाई से उठते हुए उत्तर दियाI
"कौन? वही जो शहर में सब्ज़ी का ठेला लगाता है?"
"हाँ वही! बता रहा था कि अब उसने दुकान खोल ली है, उसकी ख़ुशी में मिठाई बाँट रहा थाI" पति ने मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ सरकाते हुए कहाI
"चलो अच्छा हुआI" पत्नी ने चेहरे पर कृत्रिम सी मुस्कुराहट आईI
"वो बता रहा था कि उसने बेटे को भी टैम्पो डलवा…
Added by योगराज प्रभाकर on March 7, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
स्क्रिप्ट के पन्ने पलटते हुए अचानक प्रोड्यूसर के माथे पर त्योरियाँ पड़ गईं, पास बैठे युवा स्क्रिप्ट राइटर की ओर मुड़ते हुए वह भड़का:
"ये तुम्हारी अक्ल को हो क्या गया है?"
"क्या हुआ सर जी, कोई गलती हो गई क्या?" स्क्रिप्ट राइटर ने आश्चर्य से पूछाI
"अरे इनको शराब पीते हुए क्यों दिखा दिया?"
"सर जो आदमी ऐसी पार्टी में जाएगा वो शराब तो पिएगा ही न?"
"अरे नहीं नहीं, बदलो इस सीन कोI"
"मगर ये तो स्क्रिप्ट की डिमांड हैI"
"गोली मारो स्क्रिप्ट कोI यह सीन फिल्म में…
Added by योगराज प्रभाकर on February 23, 2016 at 2:30pm — 27 Comments
बृहस्पति और राहू के टकराव से सभी बहुत व्यथित थेI जब भी बृहस्पति के शुभ कार्य प्रारंभ होते तो राहू शरारत करने से कोई अवसर न चूकताI और जब कभी बृहस्पति पाप कर्म पर अंकुश लगाने की कोशिश करते तो राहू कुपित हो जाताI न तो राहू अपनी क्रूरता व अहंकार त्यागने को तैयार था न ही बृहस्पति अपनी नेकी व सौम्यताI बृहस्पति के साधु स्वाभाव तथा राहू की क्रूरता व दंभ के मध्य प्रतिदिन होने वाले टकराव से पृथ्वी त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही थीI धर्म-कर्म के ह्रास से और बढते हुए पाप से त्रस्त देवगण ब्रह्मदेव के समक्ष…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on January 29, 2016 at 3:30pm — 14 Comments
"अजी आधी रात होने को है, अब तो खाना खा लोI",
"मैंने कह दिया न कि मुझे भूख नहीं हैI"
"अरे मगर हुआ क्या? दोपहर को भी तुमने कुछ नहीं खायाI"
"बस मन नहीं है खाने का, तुम खा लोI"
दरअसल, कई दिनों से वे बहुत बेचैन थेI पड़ोसी के बेटे ने नया स्कूटर खरीदा था, जिसे देखकर उनके सीने पर साँप लोट रहे थेI घर के आगे खड़ा नया स्कूटर जैसे उन्हें मुँह चिढ़ाता लग रहा थाI उनकी पत्नी तीन चार बार उन्हें खाने के लिए बुला चुकीं थी, किन्तु वे हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाले जा रहे थेI …
Added by योगराज प्रभाकर on January 18, 2016 at 2:30pm — 11 Comments
सुजाता इस रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आ चुकी थीI शादी के लगभग तीन साल बाद भी हर काम में सास की टोका टाकी अब उसकी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थीI छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान करना, रसोई और सफाई को लेकर गलतियाँ निकालना, बात बात पर ताने देने सास का हर रोज़ का काम बन चुका थाI किन्तु अब उसने भी पक्का निश्चय कर लिया था कि वह भी सास को ईंट का जवाब पत्थर से देगीI आज जब वह सफाई कर रही थी तो हर रोज़ का सिलसिला फिर से शुरू हो गया I
"इतनी धूल काहे उड़ा रही है? ज़रा ध्यान से मार झाड़ूI तेरी माँ ने…
Added by योगराज प्रभाकर on January 15, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
कुछ ही दिन पहले हुई पिता की मृत्यु से वह अभी उबर भी न पाया था कि अचानक शोक संतप्त माँ को दिल का भयंकर दौरा पड़ गयाI डॉक्टरों ने साफ़-साफ़ बता दिया था कि उसकी माँ अब ज़्यादा देर की मेहमान नहींI
कुछ ही समय पहले उसके पिता की गोलियों से छलनी लाश एक सुनसान क्षेत्र में पाई गई थीI पुलिस का कहना था कि यह आतंकवादियों का काम है, जबकि स्थानीय कट्टरपंथी इसे सेना द्वारा की गई फर्जी मुठभेड़ कह कर लगातार विष वमन कर रहे थेI शवयात्रा के दौरान पूरे रास्ते में देश और सेना विरोधी नारे…
Added by योगराज प्रभाकर on December 8, 2015 at 4:30pm — 12 Comments
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नफरत की बुआई जारी है
दहशत की कटाई जारी है
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ऊपर वाला है खौफज़दा
शैताँ की खुदाई जारी है
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गुड बंटना बंद हुआ जबसे
रिश्तों में खटाई जारी है
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मेजों पर अम्न की बातें हैं
सरहद पे लड़ाई जारी है
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दिल भी मैला रूह भी मैली
सड़कों की सफाई जारी है
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नादां को दानां का तमगा
ऐसी दानाई जारी है
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गुमशुद हैं दाना पंछी का
जालों की बुनाई जारी है
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बारिश…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on November 10, 2015 at 11:00am — 8 Comments
बहुत बरसों के बाद वह स्वयं को को बहुत ही हल्का हल्का महसूस कर रहा थाl न तो उसे सुबह जल्दी उठने की चिंता थी, न जिम जाने की हड़बड़ी और न ही अभ्यास सत्र में जाने की फ़िक्रl लगभग ढाई दशक तक अपने खेल के बेताज बादशाह रहे रॉबिन ने जब खेल से संन्यास की घोषणा की थी तो पूरे मीडिया ने उसकी प्रशंसा में क़सीदे पढ़े थेl समूचे खेल जगत से शुभकामनाओं के संदेश आए थेl कोई उस पर किताब लिखने की बात कर रहा था तो कोई वृत्तचित्र बनाने कीl उसकी उपलब्धियों पर गोष्ठियाँ की जा रही थींl किन्तु वह इन सबसे दूर एक शांत…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on October 28, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
"देख ली अपने चेले की करतूत?" वयोवृद्ध शायर के सामने एक पत्रिका को लगभग फेंकते हुए एक समकालीन ने कहा।
"क्या हो गया भाई ? इतना भड़क क्यों रहे हो ?"
"इसमें अपने चेले का आलेख पढ़िए ज़रा।"
"कैसा आलेख है?"
"आपकी ग़ज़लों में नुक्स निकाले हैं उसने इस पत्रिका में, आपकी ग़ज़लों में। मैं कहता था न कि मत सिखाओ ऐसे कृतघ्न लोगों को?"
समकालीन बोले जा रहे थे, किन्तु वयोवृद्ध शायर बड़ी तल्लीनता से आलेख पढ़ने में व्यस्त थे।
"देख लिया न? अब बताइए, क्या मिला आपको ऐसे लोगों…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on September 5, 2015 at 5:19pm — 19 Comments
बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। कच्ची छत से पानी की धाराएं निरंतर बह रहीं थीं। टपकते पानी के लिए घर में जगह जगह रखे छोटे बड़े बर्तन भी बार बार भर जाते। उसके बीवी बच्चे एक कोने में दुबके बैठे थे। परेशानी के इसी आलम में कवि सुधाकर टपकती हुई छत के लिए बाजार से प्लास्टिक की तरपाल खरीदने चल पड़ा। चौक पर पहुँचते ही पीछे से किसी ने आवाज़ दी:
"सुधाकर जी, ज़रा रुकिए।" आवाज़ देने वाला उसका एक परिचित लेखक मित्र था।
"जी भाई साहिब, कहिए।"
"अरे भाई कहाँ रहते हैं…
Added by योगराज प्रभाकर on July 14, 2015 at 8:30pm — 15 Comments
"क्या हुआ माते ?"
"कुछ नहीं हुआ लक्ष्मण, तुम अयोध्या में ही रहोगे।"
"मुझ से कोई भूल हो गई क्या ?"
"भूल तुमसे नहीं श्री राम से हो गई थी, जिसे सुधारने का प्रयास कर रही हूँ।"
"भूल और मर्यादा पुरुषोत्तम से ? मैं कुछ समझा नहीं माते।"
"उर्मिला के हृदय…
Added by योगराज प्रभाकर on June 18, 2015 at 1:00pm — 20 Comments
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