"ये मिठाई कहाँ से आई जी ?" अपने खेत के किनारे चारपाई पर चुपचाप लेटे शून्य को निहारते हुए पति से पूछाI
"अरी, वो गुलाबो का लड़का दे गया था दोपहर को।" उसने चारपाई से उठते हुए उत्तर दियाI
"कौन? वही जो शहर में सब्ज़ी का ठेला लगाता है?"
"हाँ वही! बता रहा था कि अब उसने दुकान खोल ली है, उसकी ख़ुशी में मिठाई बाँट रहा थाI" पति ने मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ सरकाते हुए कहाI
"चलो अच्छा हुआI" पत्नी ने चेहरे पर कृत्रिम सी मुस्कुराहट आईI
"वो बता रहा था कि उसने बेटे को भी टैम्पो डलवा दिया है, और बेटी को भी कॉलेज में भर्ती करवा दिया है।"
"अच्छा?"
"हाँ! काफी तरक्की कर गया ये लौंडा शहर जाकरI"
बेमौसम बरसात से उजड़े हुए खेत को निहार, पहाड़ जैसे क़र्ज़ और घर में बैठी दो दो कुँवारी बेटियों को याद करते हुए एक ठण्डी आह भरते हुए वह बोली :
"हमसे तो वो ही अच्छा है जी ।"
.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
जिसने अन्न उगाया वो वहीं रह गया और जिसने उस अन्न को बेचा वो कहाँ से कहाँ पहुँच गया. किसानों की व्यथा को कसक के माध्यम से क्या ख़ूब उभारा है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.
किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शायी है आदरणीय सर |
आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम! समकालीन दुर्व्यवस्थाओं को उजागर करती यथार्थ कथावस्तु को नमन. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
किसानों को हमेशा मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है और मौसम भी उसका सगा नहीं है परेशां होकर किसान उनके बच्चे पलायन कर रहे हैं किसानों की दयनीय स्थिति को इस लघु कथा के माध्यम से बाखूबी उकेरा है आपने ..बहुत शानदार प्रस्तुति .हार्दिक बधाई आ० योगराज जी .
मोहतरम जनाब योगराज साहिब , गरीब किसान की सही तस्वीर लघु कथा में खिंच गयी , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है आदरणीय सौरभ सर। सब का पेट भरने वाला स्वयं शून्यता की तपिश सह रहा है। इस मार्मिक और श्रेष्ठ लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!
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