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//"हम उन्हें सपने बेचेंगेI उन्हीं सपनो की चकाचौंध से उन्हें अँधा करेंगेI और फिर उसी अंधेपन का फायदा उठाकर सोने की चिड़िआ का एक एक पंख नोच लेंगेI"// सच में, आज भी यही हो रहा है. और जिन्हें हमने निगरानी के लिए बिठा रखा था, वही लोग जयचंद बने हुए हैं. इस कमाल की लघुकथा के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है सर. सादर.
अहा | अद्भुत कथा | यही तो हुआ था | कितनी अद्भुत सोच है आपकी आदरणीय | बधाई सर |
आदरणीय योगराज सर,
बचपन याद आ रहा है. जब अशोक महान और अकबर को एक ही समय भारत पर राज करवा देता था. बाद में समयावधी के अन्तर ने बात साफ़ की. लेकिन आपकी रचना बचपन के उसी अनभिज्ञता को एक तर्क के साथ सामने रखा है. आठवीं शताब्दी से आज तक के कालखण्ड को समेट कर देश के गुलामी के उन कारणॊं को स्पष्ट कर दिया है. आज भी बचना बस जयचन्दो और मीरजाफ़रों से है.
सुन्दर कथा.
सादर.
आपकी सदशयता और श्लाघा के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० सुशील सरना जीI
हार्दिक आभार आ० रामबली गुप्ता जीI
दिल से शुक्रिया भाई उस्मानी जीI
हार्दिक आभार आ० डॉ विजय शंकर जीI
भाई सतविंदर कुमार जी, आपकी सराहना के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँI
मोहतरम समर कबीर साहिब, लघुकथा ने आपको मुतास्सिर किया यह जान कर सुकून मिलाI दिल से शुक्रियाI
बहुत बहुत शुक्रिया कांता रॉय जीI
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