For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरु गोविन्द (लघुकथा) - शिक्षक दिवस पर विशेष

"देख ली अपने चेले की करतूत?" वयोवृद्ध शायर के सामने एक पत्रिका को लगभग फेंकते हुए एक समकालीन ने कहा। 

"क्या हो गया भाई ? इतना भड़क क्यों रहे हो ?"

"इसमें अपने चेले का आलेख पढ़िए ज़रा।" 

"कैसा आलेख है?"

"आपकी ग़ज़लों में नुक्स निकाले हैं उसने इस पत्रिका में, आपकी ग़ज़लों में। मैं कहता था न कि मत सिखाओ ऐसे कृतघ्न लोगों को?" 

समकालीन बोले जा रहे थे, किन्तु वयोवृद्ध शायर बड़ी तल्लीनता से आलेख पढ़ने में व्यस्त थे। 

"देख लिया न? अब बताइए, क्या मिला आपको ऐसे लोगों पर दिन रात मेहनत करके ?"

"उम्र के आखरी पड़ाव में अपने शिष्य की इतनी प्रगति और ईमानदारी देखकर मुझे बहुत कुछ मिल गया भाई।" पत्रिका एक तरफ रखते हुए उनके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी।  

"ऐसा क्या कुबेर का खज़ाना मिल गया आपको?"         

"आज मुझे अपना सच्चा उत्तराधिकारी मिल गया है।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1269

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on March 5, 2016 at 12:08pm

लेखन सन्दर्भ में , जब भी कुछ समझ में नहीं आता है ,आपकी रचनायें  पढ़ने लगती हूँ और बहुत कुछ  सीखते हुए , स्वयं के लिए हमेशा एक पाठ पा जाती हूँ।  वंदन सर जी आपको ।  

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 18, 2015 at 11:38pm

आपकी  इस  लघुकथा ने हृदय को हिला सा दिया आदरणीय सर, एक-एक शब्द जैसे माला के उस रूद्राक्ष जैसा है जो 108 मनकों में से एक मनका है, यदि एक भी कम ज़्यादा हो जाये तो  माला किसी काम की नहीं| नमन सर |

Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 8:30pm
आदरणीय योगराज जी बहुत ही संदेशपरक सारगर्भित रचना हुई है । गुरु ने न केवल ग़ज़ल विधा का ज्ञान दिया बल्कि सच्चाई और स्पष्टतावादी होने का नैतिक गुण भी सिखाया । साथ ही गुरु ने भी उसकी प्रशंसा कर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सन्देश दिया कि उसे चापलूसों की नहीं सच्चे शिष्य की तलाश थी । यहाँ गुरु और शिष्य दोनों का ही उज्जवल पक्ष और चरित्र उजागर हुआ है । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2015 at 8:04pm

बहुत ही सकारात्मक सोच वाली प्रेरणास्पद लघु कथा हुई आ० योगराज जी बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार प्रस्तुति के लिए |

Comment by Nita Kasar on September 9, 2015 at 3:30pm
शिष्य को शिक्षक तो बहुत मिलते है हर कक्षा में पर सच्चे गुरू ख़ुशनसीबी और माता,पिता के ज़रिये बतौर मार्गदर्शक मिलते है वे ही शिष्यों के सच्चे पथप्रदर्शक होते है कथा सराहनीय ही नहीं सारगर्भित भी है मेरा नमन स्वीकार करिये आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 8:59pm
छद्म आवरण ओढ़े स्वयंभू गुरुओं के लिये सटीक संदेश है इसके अलावा ये लघुकथा नये रचनाकारों के लिये भी प्रेरक है दिली बधाई आपको इस लघुकथा के लिये
Comment by kanta roy on September 6, 2015 at 6:42pm
वाह !!!!!! अद्वितीय लघुकथा । साहित्य सेवा की सच्ची विद्या का दान देकर गरू सदा ही शीर्ष विराजमान रहते है । शिष्य का बिना भेद भाव विधा का आकलन करने का जो ज्ञान गुरू से मिला वो गुरू चरणों में ही अर्पित हुआ । सच्चे शिष्य गुरू के रिश्ते का आकलन किसी सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं है । बहुत ही शानदार लेखनी हुई है सर जी । बेहद ही गाम्भीर्य - भाव का संवहन हुआ है इस लघुकथा में । दिल को आनंदित कर गया ।
Comment by jyotsna Kapil on September 6, 2015 at 4:33pm
बहुत ही सुंदर कथा आदरणीय योगराज सर।ऐसे गुरु ही सच्चे अर्थों में शिष्य के हितचिंतक होते हैं।ऐसी सोच आप जैसा व्यक्ति ही रख सकता है जो सदैव नवांकुरों के हित के लिए प्रयत्नशील रहता है।
Comment by Tanuja Upreti on September 6, 2015 at 4:26pm

बहुत सुन्दर और  प्रेरक रचना के लिए शुभकामनाएँ आदरणीय योगेन्द्र जी

Comment by ram shiromani pathak on September 6, 2015 at 3:47pm
वाह आदरणीय ऐसे महान विचार आप जैसे गुरु के ही हो सकते है।।आपकी ये लघुकथा मुझे बहुत पसंद आई।।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service