बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। कच्ची छत से पानी की धाराएं निरंतर बह रहीं थीं। टपकते पानी के लिए घर में जगह जगह रखे छोटे बड़े बर्तन भी बार बार भर जाते। उसके बीवी बच्चे एक कोने में दुबके बैठे थे। परेशानी के इसी आलम में कवि सुधाकर टपकती हुई छत के लिए बाजार से प्लास्टिक की तरपाल खरीदने चल पड़ा। चौक पर पहुँचते ही पीछे से किसी ने आवाज़ दी:
"सुधाकर जी, ज़रा रुकिए।" आवाज़ देने वाला उसका एक परिचित लेखक मित्र था।
"जी भाई साहिब, कहिए।"
"अरे भाई कहाँ रहते हैं आजकल? परसों सावन कवि सम्मलेन है। मैं चाहता हूँ कि आप बरसात पर कोई ऐसा फड़कता हुआ गीत पेश करें ताकि लोगबाग मस्ती में झूम उठें।"
सावन और बरसात का नाम सुनते ही घर टपकती हुई छत उसकी आँखों के सामने आ खड़ी हुई, टपकते हुए पानी को संभालने में असमर्थ बर्तन उसे मुँह चिढ़ाने लगे।
"क्या सोच रहे हैं? अरे देश के बड़े बड़े कवियों की मौजूदगी में कवितापाठ करना तो बड़े गर्व की बात है।"
"वह सब तो ठीक है, लेकिन मुझसे झूठ नहीं बोला जाएगा।"
.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शुक्ल जी, आपकी १९८५ की कविता पढ़कर आनन्द आया...सुन्दर भाव और शब्द संयोजन।
आपसे ऐसी ही और भी कविताएँ मिलेंगी, यह आशा है। सादर।
"वह सब तो ठीक है, लेकिन मुझसे झूठ नहीं बोला जाएगा।" ---क्या बात है ----
आदरणीय योगराजभाईजी, आपकी लघुकथा की संवेदना नम कर जाती है. कई बार तो हम पाठक यह देख कर चकित रह जाते हैं कि वर्णित घटनाएँ और तदनुरूप पात्रजन्य या लेखकीय अभिव्यक्तियाँ तो हमारे आम जीवन से ली गयी हैं, लेकिन उनका विशिष्ट प्रस्तुतीकरण कितना विन्दुवत और् कितना झन्नाटेदार हुआ करता है !
इसी लघुकथा में ’वह सब तो ठीक है, लेकिन मुझसे झूठ न बोला जायेगा’ किसी त्रस्त मनस की सहज अभिव्यक्ति है. लेकिन इसका इंगित उचित माहौल को व्यापक करता हुआ पाठक से संवेदना की पराकाष्ठा साझा करता है. सफल कथा के लिए हार्दिक धन्यवाद अदरणीय.
हृदयतल से शुभकामनाएँ
आदरनीय योगराज भाई जी, मज़ा आ गया!कितनी गहनता से एक कवि की व्याकुलता को वर्णित किया है आपने इस लघु कथा के माध्यम से!आपकी सोच और दूरदर्शिता को सलाम!ज़्यादा कुछ लिखूंगा तो छोटे मुंह बडी बात हो जायेगी !हार्दिक बधाई!
आदरणीय इतनी भावप्रवण रचना के लिए बधाई स्वीकारें I
आदरणीय योगराज जी इसे लघुकथा की कक्षा में उदाहरण के तौर पर पेश किया जा सकता है। शानदार लघुकथा है। दिली दाद कुबूल कीजिए।
केवल कवि का ही नहीं, बहुत अभागों का दर्द इस लघु कथा से बह रहा है।
हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online