For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22/112

.
आह मज़लूम ने भरी होगी.
आग यूँ ही नहीं लगी होगीI

एक गोली कहीं चली होगी.
एक दुनिया उजड़ गई होगीI

शर्म से लाल हो गया पीपल,
बेल कोई लिपट गई होगीI

झूमकर नाचने लगी मीरा, 

शाम की बांसुरी बजी होगीI

जुगनुओं का हुजूम जब निकला,
चाँद की नींद उड़ गई होगीI

आज तक भी है अनगढ़ा पत्थर,
जिसको छैनी बुरी लगी होगीI

रो रही अब कटी फटी सी पतंग,
डोर की बाँह छोड़ दी होगीI  


दर्द से आज तक हो नावाकिफ,
यार! तुम से न शायरी होगीI
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 9, 2018 at 12:40pm

आह मज़लूम ने भरी होगी.
आग यूँ ही नहीं लगी होगीI

एक गोली कहीं चली होगी.
एक दुनिया उजड़ गई होगीI

आदरणीय योगराज सर , सीधे दिल को छूते अशआर .... अंतर्भावों की शानदार अभिव्यक्ति .... ये ग़ज़ल शानदार अहसासों का हुजूम है। ..... हार्दिक बधाई सर।

Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 10:22am

बहुत ही शानदार ग़ज़ल है सर. हर शेर लाजवाब है.

//आज तक भी है अनगढ़ा पत्थर,
जिसको छैनी बुरी लगी होगीI//

यह शेर तनकीद को नाकाबिल-ए-बर्दाश्त समझने वाले नवहस्ताक्षरों को याद रखना चाहिए.

//दर्द से आज तक हो नावाकिफ,
यार! तुम से न शायरी होगीI //

पूर्णतः सहमत हूँ इस शेर. शायरी बिना दर्द के नहीं होती.

इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2016 at 4:18am

एक अरसे बाद लेकिन क़ामयाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय ..

सादर

Comment by मनोज अहसास on October 19, 2016 at 8:13pm
बहुत बहुत बधाई सर जी
बहुत खूब

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2016 at 7:55pm

आदरणीय योगराज भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , क्या बात है । हरेक शेर काबिले दाद है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
शर्म से लाल हो गया पीपल,
बेल कोई लिपट गई होगीI


आज तक भी है अनगढ़ा पत्थर,
जिसको छैनी बुरी लगी होगीI


दर्द से आज तक हो नावाकिफ,
यार! तुम से न शायरी होगीI   ---   इन तीन शेरों के होने के लिये जितनी बधाइयाँ दूँ कम है -- वाह

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 1:07pm
परम् आदरणीय योगराज सर बेहतरीन ग़ज़ल कही है ।सादर नमन!बेशक पतंग को हमने आज तक स्त्रीलिंग ही पढ़ा है।और आगे भी इसे यूँ ही प्रयोग करते रहेंगे!अभी हमारा मिजाज उर्दूई पूरी तरह नहीं हो पाया है,इसलिए भी यह जरूरी है कि हम इसे हिंदी में स्त्रीलिंग समझकर ही प्रयोग करें।आदरणीय समर कबीर जी एवं आदरणीया राजेश दीदी के संस्मरण से अंदाज़ा हो ही आया है कि बेशतर उर्दू शायर इसे पुल्लिंग शब्द मानते हैं।सादर
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 19, 2016 at 11:56am

आदरणीय योगराज भाईजी

बहुत ही खूबसूरत गजल और पतंग पर ज्ञान वर्धक चर्चा के लिए हार्दिक बधाई । आदरणीय भाई समर कबीर का भी आभार ।

शाम में टंकण त्रुटि है श्याम कर लीजिए।

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2016 at 11:38am

किस एक शेर की बात करूं सभी एक से बढ़कर एक हुए आद० योगराज जी बहुत ही मुरस्सा ग़ज़ल हुई है दिल से हर शेर पर दाद हाजिर है .पतंग शब्द को लेकर चर्चा हुई अच्छा लगा हालाँकि इस तरह की चर्चा मेरे शेर को लेकर एक और ब्लॉग पर भी हुई थी पर मैंने अपना शेर वैसा ही रहने दिया हिन्दी साहित्य में हजारों जगह पतंग को स्त्रीलिंग ही प्रयोग किया है उर्दू के विषय में नहीं जानती थी सो इस चर्चा से आज साफ़ हो गया है ओबिओ मंच की यही तो ख़ासियत है कि यहाँ लेखकों और पाठकों को ऐसी चर्चाओं से लाभ होता है |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:31am

ग़ज़ल पसंद करने के लिए हार्दिक आभार भाई सुरेश कुमार कल्याण जीI


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:30am

हार्दिक आभार आ० कल्पना भट्ट जी, आपको ये शेअर पसंद आए तो ये मुझे भी अच्छे लगने लगेI 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
3 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
Friday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service