घर का माहौल ग़मगीन था, डॉक्टर ने दोपहर को ही बता गया था कि माँ बस कुछ देर की ही की मेहमान हैI माँ की साँसें रह रह उखड रही थीं, धड़कन शिथिल पड़ती जा रही थी किन्तु फिर भी वह अप्रत्याशित तरीके से संयत दिखाई दे रही थीI ज़मीन पर बैठा पोता भगवत गीता पढ़ कर सुना रहा था, अश्रुपूरित नेत्र लिए बहू और बेटा माँ के पाँवों की तरफ बैठे सुबक रहे थेI
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बहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली लघुकथा है सर. वाक़ई माँ, माँ ही होती है. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित सर. सादर.
रचना के मर्म तक पहुँचने और उसकी मुक्तकंठ प्रशंसा के लिए दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० राजेश कुमारी जी.
लघुकथा की सराहना हेतु तह-ए-दिल से शुकरगुज़ार हूँ मोहतरम जनाब तसदीक़ अहमद खान साहिब.
दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० सुशील सरना जीI
मोहतरम जनाब योगराज साहिब , नई और पुरानी संस्कृति को बयान करती और सीख देती सुन्दर लघु कथा के लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
ठन्डे चूल्हे और खाली कनस्तर को देखते हुए माँ का कहना की मेरा श्राद्ध नहीं करना अपने में बहुत ही गूढता भाव समाये हुए है कोई भी माँ जीते जी तो क्या मरने के बाद भी अपने बच्चों को परेशान नहीं देखना चाहती जीते जी बच्चों ने दरिद्रता में भी माँ की इतनी सेवा की की वो तृप्त होकर संसार त्याग रही है फिर उस श्राद्ध में क्या रक्खा है जिसको बच्चे परेशानी में एक रीतिरिवाज समझकर निभाते रहें उस जंजीर से उस अंधी आस्था से मुक्ति देना चाहती है माँ अपने बच्चों को |दूसरा एक पहलु इस लघु कथा का ये भी है की इतने दरिद्र होते हुए भी बहू ने सास की निःस्वार्थ सेवा की है जो अमूमन खाते पीते घरों में देखने को नहीं मिलता यहाँ भी यह लघु कथा बहुत ही सार्थक सन्देश दे रही है |बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० योगराज जी बहुत बहुत बधाई |प्रस्तुति पर थोड़ी देर से पँहुची जिसका खेद है |
ठण्डे चूल्हे और आटे के खाली कनस्तर की तरफ ताकते हुए माँ ने कहा:
“वचन दो कि मेरे मरने के बाद तुम कभी मेरा श्राद्ध नहीं करोगे.”
वाह आदरणीय योगराज जी ... हकीकत बयाँ करती इस मार्मिक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर। उपरोक्त पंच लाइन ने मार्मिकता, गहनता और भावों को जो जामा पहनाया है वो वाकई तारीफ़ के काबिल है। दिल से दाद कबूल फरमाये सर।
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