(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
मेरी झोली ख़सारों से भरी है, ये मामूली सी ने'मत है? नहीं तो! ...वाह! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय योगराज सर. इस उम्दा प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरनीय योगराज भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , आपने .. शे र दर शेर बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आ. भाई योगराज जी रचना और रचनाकार दोनों को कोटि कोटि नमन ।
आ. योगराज सर,
तो सुरक्शत लिखा जाय :p
सादर
आ. योगराज जी,
कई बार काफिये की मजबूरियाँ अखरती हैं, ग़ालिब ने इसी लिए तंगानाये-ग़ज़ल की शिकायत की थी.
मगर क्या कीजियेगा शायर को ग़ज़ल की सीमाओं में ही बेहतर करना होता है.
वैसे शेर इस परिवर्तन के बाद भी एक हृदयस्पर्शी शेर है.
सादर
भाई निलेश नूर जी, पंजाबी में व्यंजन "क्ष" नहीं होता इसलिए मंदिर/मंदर की तर्ज़ पर सुरक्षित को सुरक्षत पढने या बोलने का सवाल ही पैदा नहीं होताI
आ. योगराज सर...
काश सभी मित्र जितना अपने शब्दों को लेकर जागरूक हैं, उतना ही अन्य भाषा के शब्दों को लेकर भी हो जायें.
वैसे पंजाबी लहजे में सुरक्षित को सुरक्षत पढना आम है ..जैसे मन्दिर को मंदर ...( ये एक सम्भावित कुतर्क हो सकता है :-))))
आ० भाई अनुराग वशिष्ठ जी, "सुरक्षित" शब्द गलती से नहीं लिखा थाI दरअसल सलामत शब्द से वो फीलिंग नहीं आ रही थी, बहरहाल भावुकता में काफियाबंदी गलत हो गईI अब सुरक्षित की जगह सलामत कर दिया है, रचना को समय देने के लिए दिल से आपका शुकरगुज़ार हूँI
आ० निलेश नूर जी, गलती सुधार ली गई हैI
आ० डॉ आशुतोष मिश्रा जी, उस शेअर में "में" शब्द वाकई छूट गया था, ध्यानाकर्षण हेतु हार्दिक आभारI
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