सुजाता इस रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आ चुकी थीI शादी के लगभग तीन साल बाद भी हर काम में सास की टोका टाकी अब उसकी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थीI छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान करना, रसोई और सफाई को लेकर गलतियाँ निकालना, बात बात पर ताने देने सास का हर रोज़ का काम बन चुका थाI किन्तु अब उसने भी पक्का निश्चय कर लिया था कि वह भी सास को ईंट का जवाब पत्थर से देगीI आज जब वह सफाई कर रही थी तो हर रोज़ का सिलसिला फिर से शुरू हो गया I
"इतनी धूल काहे उड़ा रही है? ज़रा ध्यान से मार झाड़ूI तेरी माँ ने इतनी भी अक्ल नहीं दी तुझे?"
"ज़रा मुँह संभाल कर बात करो अम्मा जीI मुझे तो कहना हो कहो पर खबरदार जो मेरी माँ पर गई तोI" उसके अन्दर का लावा अंतत: फूट ही पड़ाI
"जुबान लड़ाती है? तू कर क्या लेगी री नासपीटी?"
"छठी का दूध याद दिला दूँगीI" सास की आँखों में आँखें डालते हुए वह बोलीI
"ठहर कमीनीI" यह कहकर हाथ उठाया ही था कि सुजाता ने बीच में ही उसकी कलाई को कसकर पकड़ लियाI
"ये गलती मत कर देना अम्मा, वर्ना मेरा भी हाथ उठ जाएगाI" सास को पलंग पर लगभग धकेलते हुए बोलीI
उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार से सास काँप उठीI उसकी आँखों में भय के भाव देखकर उसका मन जीत की ख़ुशी से भर गयाI आज बरसों से सुलग रही अपमान की अग्नि शांत हुई थी, और वह खुद को बहुत ही हल्का फुल्का महसूस कर रही थीI पलंग पर दुबक कर बैठी हुई सास को घूरते हुए वह बाहर निकल ही रही थी कि अचानक चौबारे से उतर कर सुजाता की विवाहित ननद कमरे में दाखिल हुईI
"अम्मा ! ये भाभी तुमसे क्यों झगड़ रही थी? क्या उसने हाथापाई की है तुम्हारे साथ?"
"सुन री! यह हमारा सास-बहू का मामला है, तू कौन होती है बीच में टांग अडाने वाली?"
"पर माँ मैं बेटी हूँ तुम्हारीI"
"याद रख, हमारा ख्याल बहू को रखना है न कि तुझेI इसलिए बेहतर होगा कि तू अपना ध्यान अपनी घर गृहस्थी में लगाI"
यह सुनते ही सुजाता के चेहरे के भाव बदलने शुरू हो गए, जीत की ख़ुशी किसी लानत की तरह उसकी अंतरात्मा पर चाबुक बरसाने लगीI वह अचानक पलटी और दरवाज़े के पास आते हुए धीमे से स्वर में बोली:
"तुम्हार लिए चाय बनाऊँ अम्मा जी?"
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
यह परिवर्तन ही जरुरी होता है | गर यह समझदारी घर के सभी लोगों में आ जाये तो सास बहु का झगडा ही ख़तम हो जाये | बहुत सुंदर कथा है आदरणीय सर | सादर |
आपस में खटपट तो होगी ही, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि औरों को उसमें टाँग अड़ाने दिया जाए| बहुत मनोवैज्ञानिक पहलू दर्शाया आपने इस रचना में और अंत बेहतर हुआ इसका| बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए आदरणीय योगराज सर
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!एक ही घुडकी में सारा पांसा पलट गया!बेहतरीन लघुकथा!
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