For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुजाता इस रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आ चुकी थीI शादी के लगभग तीन साल बाद भी हर काम में सास की टोका टाकी अब उसकी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थीI छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान करना, रसोई और सफाई को लेकर गलतियाँ निकालना, बात बात पर ताने देने सास का हर रोज़ का काम बन चुका थाI किन्तु अब उसने भी पक्का निश्चय कर लिया था कि वह भी सास को ईंट का जवाब पत्थर से देगीI आज जब वह सफाई कर रही थी तो हर रोज़ का सिलसिला फिर से शुरू हो गया I
"इतनी धूल काहे उड़ा रही है? ज़रा ध्यान से मार झाड़ूI तेरी माँ ने इतनी भी अक्ल नहीं दी तुझे?"

"ज़रा मुँह संभाल कर बात करो अम्मा जीI मुझे तो कहना हो कहो पर खबरदार जो मेरी माँ पर गई तोI" उसके अन्दर का लावा अंतत: फूट ही पड़ाI
"जुबान लड़ाती है? तू कर क्या लेगी री नासपीटी?"
"छठी का दूध याद दिला दूँगीI" सास की आँखों में आँखें डालते हुए वह बोलीI
"ठहर कमीनीI" यह कहकर हाथ उठाया ही था कि सुजाता ने बीच में ही उसकी कलाई को कसकर पकड़ लियाI
"ये गलती मत कर देना अम्मा, वर्ना मेरा भी हाथ उठ जाएगाI" सास को पलंग पर लगभग धकेलते हुए बोलीI
उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार से सास काँप उठीI उसकी आँखों में भय के भाव देखकर उसका मन जीत की ख़ुशी से भर गयाI आज बरसों से सुलग रही अपमान की अग्नि शांत हुई थी, और वह खुद को बहुत ही हल्का फुल्का महसूस कर रही थीI पलंग पर दुबक कर बैठी हुई सास को घूरते हुए वह बाहर निकल ही रही थी कि अचानक चौबारे से उतर कर सुजाता की विवाहित ननद कमरे में दाखिल हुईI
"अम्मा ! ये भाभी तुमसे क्यों झगड़ रही थी? क्या उसने हाथापाई की है तुम्हारे साथ?"
"सुन री! यह हमारा सास-बहू का मामला है, तू कौन होती है बीच में टांग अडाने वाली?"
"पर माँ मैं बेटी हूँ तुम्हारीI"
"याद रख, हमारा ख्याल बहू को रखना है न कि तुझेI इसलिए बेहतर होगा कि तू अपना ध्यान अपनी घर गृहस्थी में लगाI"

यह सुनते ही सुजाता के चेहरे के भाव बदलने शुरू हो गए, जीत की ख़ुशी किसी लानत की तरह उसकी अंतरात्मा पर चाबुक बरसाने लगीI वह अचानक पलटी और दरवाज़े के पास आते हुए धीमे से स्वर में बोली:

"तुम्हार लिए चाय बनाऊँ अम्मा जी?"
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 10:25pm

यह परिवर्तन ही जरुरी होता है | गर यह समझदारी घर के सभी लोगों में आ जाये तो सास बहु का झगडा ही ख़तम हो जाये | बहुत सुंदर कथा है आदरणीय सर | सादर | 

Comment by Nita Kasar on January 18, 2016 at 7:39pm
जहाँ चार बर्तन होंगे खड़केंगे ही अच्छा हो तालमेल बना कर रखा जाय जल्द ही सासु माँ को समझ आ गया रहना तो बहू के साथ ही है ।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आपको आद०योगराज प्रभाकर जी ।क्योंकि ज़रूरी है बहू के सहने की सीमा होना चाहिये ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 16, 2016 at 9:22am
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् पूज्य गुरूजी!दोनों ही एक दूसरे के सम्मान को तरजीह देने लगी।कमाल का पंच।बहुत कुछ सीखाती इस लघुकथा को साँझा करने के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 16, 2016 at 2:19am
" हमारा ख्याल बहू को रखना है न कि तुझेI इसलिए बेहतर होगा कि तू अपना ध्यान अपनी घर गृहस्थी में लगाI"
सारी बात तो इसी में जो लोग समझते नहीं।
बहुत सुन्दर कथा ,बधाई , आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on January 15, 2016 at 10:09pm
जनाब योगराज प्रभाकर जी,आदाब,आपकी लघुकथा बहुत पसंद आई,सबक़ आमोज़ है ,इस बहतरीन लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by विनय कुमार on January 15, 2016 at 7:49pm

आपस में खटपट तो होगी ही, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि औरों को उसमें टाँग अड़ाने दिया जाए| बहुत मनोवैज्ञानिक पहलू दर्शाया आपने इस रचना में और अंत बेहतर हुआ इसका| बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए आदरणीय योगराज सर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 15, 2016 at 5:10pm
हृदय परिवर्तन! यही वह क्षण भर की विसंगती अचानक दो रिश्तों के बीच में यकायक प्रकट होती है, कोई एक पात्र स्थिति का रुख बदलकर सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम का निर्माण कर देता है, या तो अत्यंत दखांत होता है या उक्त कथा समान दिलचस्प सुखांत। हमारे सामाजिक परिवेश से लिए इस कथानक को बेहतरीन लघुकथा के सांचे में ढालकर एक सीख देती हुई उत्कृष्ट लघुकथा सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 15, 2016 at 4:49pm

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!एक ही घुडकी में सारा पांसा पलट गया!बेहतरीन लघुकथा!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
31 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service