For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अजी आधी रात होने को है, अब तो खाना खा लोI",
"मैंने कह दिया न कि मुझे भूख नहीं हैI"
"अरे मगर हुआ क्या? दोपहर को भी तुमने कुछ नहीं खायाI"
"बस मन नहीं है खाने का, तुम खा लोI"
दरअसल, कई दिनों से वे बहुत बेचैन थेI पड़ोसी के बेटे ने नया स्कूटर खरीदा था, जिसे देखकर उनके सीने पर साँप लोट रहे थेI घर के आगे खड़ा नया स्कूटर जैसे उन्हें मुँह चिढ़ाता लग रहा थाI उनकी पत्नी तीन चार बार उन्हें खाने के लिए बुला चुकीं थी, किन्तु वे हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाले जा रहे थेI
कमरे की खिड़की से स्कूटर को देखकर उनकी भृकुटियाँ तन रही थीं, क्रोध से नथुने फूलने लगे, वे अचानक कुढ़कर बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकल गएI
"बाप दादा सारी जिंदगी कैंची-उस्तरा चलाते मर गए, और बेटा साला नवाब बनकर नया स्कूटर लिए घूम रहा हैI"
बाहर अँधेरा था, उन्होंने चारों ओर देखकर खुद को आश्वस्त किया, और फिर उनकी जेब से निकला हुआ तेज़ चाकू स्कूटर की पूरी गद्दी चीरता हुआ निकल गयाI फटी हुई गद्दी देख उनकी आँखों में चमक आ गई जैसे मनों बोझ उनके दिल से उतर गया होI तेज़ी से अपने घर में प्रवेश करते ही उन्होंने पत्नी को आवाज़ दी:
"अब ले आओ खाना भागवान, बहुत ज़ोरों की भूख लगी हैI और हाँ, इस चाकू को अच्छी तरह गंगाजल से धो देनाI"
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 7:26pm

आदरणीय योगराज भाई , जब आचरण को गिरह निर्देशित करे तो यही होता है , और अफसोस की बात ये कि हर किसी के पास किसी न किसी प्रकार की गिरह है , जो उसे निर्धित कर रहा है , कोई इस से अचूता नही है । बहुत बारीक बात कही आपने कथामे । हार्दिक बधाई आपको ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 9:13pm

आदरणीय योगराज सर, गिरह शीर्षक को सार्थक करती अद्भुत लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई. सादर नमन 

Comment by Nita Kasar on January 20, 2016 at 9:06pm
इशारों इशारों कई निशाने साध लिये गये है ।काश थोड़ा सा गंगाजल अंतरात्मा पर छिड़क लिये होते तो दिल में गिरह ना पलती ।आपकी हर कथा बहुत कुछ सीखा जाती है।आपके लिये बधाईयां आद०योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 12:11pm

एक तीर से कई शिकार कर दिए आपकी इस रचना ने ,हार्दीक बधाई आपको आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on January 19, 2016 at 10:23am
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,आपकी लघुकथा से बहुत कुछ सीखने को मिला,बहुत ख़ूब वाह ढेरों बधाई स्वीकार करें |
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 6:03am

मनुष्य दूसरों की उन्नति औ शुख से किस तरह व्यथित है वतमान सच्चाई को उजागर कटी इस कथा के लिए कोटि कोटि बधाई ...आ० भाई योगराज जी ..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 18, 2016 at 10:45pm
गिरह खुली, भूख खुली! मुहावरों व शब्दों के सुंदर सटीक उपयोग के साथ कैंची, उस्तरे, स्कूटर, गद्दी, तेज़ चाकू, व गंगाजल के माध्यम से एक से अधिक सार्थक संदेशों को सम्प्रेषित करती बेहतरीन लघुकथा सृजन के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2016 at 9:43pm

ओह्ह्ह तो ये डाह की गिरह थी मन में जिसके चलते भूख भी उड़ गई थी क्या गिरह खोली ....

बहुत उम्दा शानदार प्रस्तुति दिल से ढेरों बधाई आ० योगराज जी .

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2016 at 7:58pm

"अब ले आओ खाना भागवान, बहुत ज़ोरों की भूख लगी हैI और हाँ, इस चाकू को अच्छी तरह गंगाजल से धो देनाI"वाह आदरणीय योगराज सर इस एक पंच लाईन में आप बहुत कुछ कह गए। मन की कुढ़न को गद्दी पर निकालना फिर चाकू का गंगा जल से धोना जैसे चाकू ने किसी पापी को छू लिया हो। इस सुंदर कसी हुई लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सर जी।  आपकी प्रस्तुति से सदा कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। लघुकथा का आरम्भ मध्य और अंत बहुत ही सुंदर गठित हुआ है।  हार्दिक बधाई सर। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 18, 2016 at 5:48pm
//चाकू को गंगाजल से अच्छी तरह धो देना//
लाज़वाब!!धर्मपरायणता के मुखोटे का ज़बरदस्त अनावरण।हार्दिक बधाई पूज्य योगराज सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service