"क्या? आपने धूम्रपान छोड़ दिया? ये तो आपने कमाल ही कर दिया।"
"आखिर इतनी पुरानी आदत को एकदम से छोड़ देना कोई मामूली बात तो नहीं।"
"सही कहा आपने, ये तो कभी सिगरेट बुझने ही नही देते थे।"
"जो भी है, इनकी दृढ इच्छा शक्ति की दाद देनी होगी।"
"इस आदत को छुड़वाने का श्रेय आखिर किस को जाता है?"
"भाभी को?"
"गुरु जी को?"
"नहीं, मेरी रिटायरमेंट को।"उसने ठंडी सांस लेते हुए उत्तर दिया।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है सर आपने इस कथा के माध्यम से | रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों की आदतें जब उनको बदलनी पडती है दर्द होता है उनको ,बहुत ही मार्मिक पल को आपने कहा है इस कथा के माध्यम से | आदरणीय रवि सर के कमेंट के कमेंट से भी सीखना मिला है | सादर प्रणाम आप दोनों को |
बहुत ही सुन्दर लघुकथा, सशक्त रचना, ये रचना मैंने आज देखी , शायद उस समय दफ्तर के कार्य से बाहर था ....आनंद आ गया , शिल्प भी समझ आ रहा है ! आपको हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज सर ! सादर
लघुकथा की मुक्तकंठ से प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार भाई मिथिलेश वामनकर जी।
सशक्त प्रस्तुति है.... रिटायर्मेंट के दर्द को आपने बहुत अच्छे ढंग उकेरा है.... इस सशक्त और प्रभाव छोड़ने वाली रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय योगराज सर
प्रिय अनुज रवि, रचना को बहुमूल्य समय देने, पसंद करने इस विधा की बारीकियों को बेहद सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने हेतु शुक्रिया।
आ० डॉ किरण आर्य जी
आ० कल्पना रामानी जी
अग्रज प्रदीप सिंह कुशवाहा जी
आ० लडीवाला जी.
लघुकथा पसंद करने के लिए अतिशय आभार
लघुकथा में तीक्ष्ण और सूक्ष्म व्यंग्य एक केन्द्रीय तत्त्व होता है। व्यंगात्मक पेशकारी बौद्धिकता का प्रमाण है। लघुकथा से यह आशा कि जाती है कि वह पाठक की सोच को प्रभावित करे और रचना पढ़ने/सुनने के बाद वह कुछ सोचने/करने के लिए प्रेरित हो। लघुकथा पाठकों को उन घटनाओं या व्यवहारों पर सोचने/करने के लिए भावात्मक झटका देती है जिनको वो पहले जीवन में तुच्छ समझ कर नजरअंदाज कर देता है। व्यंग्य ही लघुकथा और चुटकले को पृथक करता है। चुटकुला कुछ क्षणों के के लिए पाठक को यथार्थ की धरातल से दूर कर उसे हंसाता है। परन्तु लघुकथा पढ़ने के बाद संवेदनशीन पाठक के मन मस्तिष्क पर सन्नटा सा छा जाता है और वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाता है। सहजता में असहजता और साधारणता में छुपी असाधारणता को केन्द्रीय बिन्दु बनाने से लघुकथा का गल्पी बिंब उभर कर सामने आता है।
आदरणीय श्री प्रभाकर जी की प्रस्तुत लघुकथा पाठक को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। कसा हुआ शिल्प, शब्दों की अल्पता इस पर चार चांद लगाते है। जो लोग इसे महज चुटकुला समझने की भूल कर कर रहे हैं उन्हे लघुकथा पर गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है। सादर ।
अब तक दोहों के बारे में कहा जाता था की "देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर,"लेकिन जब से लघु कथाओं की बयार चली है
श्रेष्ठ लघु कथाओं के बारे में भी यही अथवा "गागर में सागर" वाली कहावत चरितार्थ होती है | यह बात आपकी लघु कथाओं
में सपष्ट परिलक्षित होती है,जिसमे कहानी जहा सम्पाप्त होती है, आगे की बात स्वत मन में आकार ले लेती है जिसे कहानी
में कहा तो नहीं गया पर भाव छिपा है | बहुत बहुत बधाई सुन्दर लघु कथा के लिए आद. श्री योग राज भाई जी
आदरणीय श्री प्रभाकर जी
सादर अभिवादन
हरि अनन्त हरि कथा अनंता
लघु कथा बांचें संता बंता
सुन्दर कथा कहेयो जग नामा
सादर जोर कर करेहू प्रनामा
जय हो मंगलमय हो .
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