एक रात अचानक पुलिस वाले उसे उग्रवादी बता कर घर से उठा कर ले गए. क्या क्या ज़ुल्म नहीं किये गए थे उस पर. वह चीख चीख कर खुद को बेनुगाह बताता रहा लेकिन सब कुछ सुनते हुए भी सरकारी जल्लाद बहरे बने रहे. यातनाएं सहते सहते तक़रीबन छह महीने बीत गए थे. तभी एक दिन सरकार ने अपनी नई नीति के अनुसार उसे रिहा कर दिया ताकि वह भी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो सके. उसके वापिस लौटने से घर में ख़ुशी का वातावरण था, लेकिन वह जड़वत बैठा न जाने कहाँ खोया रहता. वृद्ध पिता ने एक दिन उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा:
"बहुत दिन हो गए तुम्हें वापिस आए हुए, कुछ काम काज का सोचा?"
"नौकरी तो अब मिलने से रही..... तो ……"
"बेटा, अगर कहो तो लोन लेकर तुम्हें एक टैक्सी दिलवा दें?"
"टैक्सी नहीं, मुझे एक बन्दूक दिलवा दो बापू."
अंदर की आग अब उसकी आँखों में उतर आई थी।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
ek निर्दोष के अंतर्मन की व्यथा | सर ऐसा समय जिसने भी झेला होगा सच में कितना कष्टदायक रहा होगा ! आज भी सोचते है तो आह निकल जाती है | पर कहीं न कहीं आज भी ऐसे निर्दोष होंगे जो पीड़ित होंगे |
निर्दोष के अंतर्मन में यातना के परिणाम स्वरुप विद्रोह पनपता है तो यही स्थिति बनती है.... व्यवस्था तब वो कारखाना बन जाती है जिसमे अपराधी बनते है.... बेहतरीन, मार्मिक और सार्थक लघुकथा के लिए हृदय से बधाई
आदरणीय सौरभ भाई जी, आपका अनुमोदन प्राप्त कर रचना और रचनाकार दोनों धन्य हुए. दिल से शुक्रिया आदरणीय।
अस्सी के दशक में जब पंजाब प्रदेश पूरी तरह उग्रवाद की चपेट में था तब ऐसे काफी किस्से देखने सुनने को मिला करते थे. बहुत से निरापराध लोगों ने पुलिस अत्याचार सहने के बाद हथियार उठाने का फैसला किया था. यही नहीं उस समय सरकारी कारागारों ने किसी अपराध यूनिवर्सिटी की तरह काम किया, मासूम से लड़के वहाँ से पूरी तरह अपराधी बन कर आते हुए भी सुने गए. बस उसी तरह की एक घटना को शब्द देने का प्रयास किया है. आपको यह प्रयास पसंद आया यह मेरे लिए अतयंत हर्ष का विषय है, आपकी औदार्यपूर्ण टिप्प्णी हेतु आपका सादर धन्यवाद।
आ० कुंती मुकर्जी लघुकथा आपको पसंद आई यह जान कर बहुत अच्छा लगा, सादर आभार।
दिल से शुक्रिया भाई केवल प्रसाद जी.
रचना को मान देने के लिए सादर धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी.
आपकी इस उदार और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने मेरा हौसला बढ़ाया है आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, सादर आभार।
सादर आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेई जी.
आदरणीय मीना पाठक जी, लघुकथा ने आपके दिल को छुया जान कर बेहद हर्ष हुआ, सादर धन्यवाद स्वीकारें।
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