For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"शादी के दस साल बाद भी ऐसी हरकत ?"
"……………"
"क्या ये सच है क़ि तेरे पेट में मालिक का बच्चा है ?"
"हाँ, ये बात बिलकुल सच है." 
"अरी छिनाल, लोगों को पता चलेगा तो वो क्या कहेंगे ?"

"और तो कुछ पता नहीं, लेकिन अब तुम्हे
कोई नामर्द नहीं कहेगा"
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1189

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 11:19pm

कितना कटु है यह विषैला सत्य  बहुत कुछ कह गयी यह कथा भी आपकी आदरणीय सर | हार्दिक बधाई |

Comment by Kiran Arya on December 11, 2013 at 4:18pm

एक ऐसा सच जो इस समाज का ही हिस्सा है ....बहुत कुछ कह जाती है आपकी ये लघु कथा सर ....निशब्द है मन के भाव इस कहानी को पढ़कर .......


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 18, 2013 at 1:10pm

डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी - आपकी उत्साहवर्धक टिप्प्णी हेतु ह्रदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ.
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, सादर आभार।
सादर धन्यवाद आ० लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी.
भाई शिज्जू शकूर जी, रचना पसंद करने के लिए दिल से धन्यवाद।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ह्रदय से आभार।
भाई अरुण शर्मा अनंत जी - आपको रचना अच्छी लगी,  यह जानकार ख़ुशी हुई. दिल से धन्यवाद आपका।
आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, बहुत बहुत आभार।
सादर धन्यवाद भाई सुशील जोशी जी.  
दिल से धन्यवाद भाई जितेन्द्र जीत जी.
सादर आभार आ० अरुण कुमार निगम भाई जी.
रचना को  और पसंद करने के लिए आपका आभारी हूँ डॉ प्राची सिंह जी
रचना के मर्म तक पहुँचने हेतु आपका दिल से आभार आ० राजेश कुमारी जी. वैसे कम शब्दों में अपनी बात कहना लघुकथा की खासियत ही नहीं बल्कि एक शर्त भी है.
दिल से शुक्रिया आ० मीना पाठक जी.
सादर धन्यवाद आ० विजय मिश्र जी.
आभार भाई पीयूष द्विवेदी भारत जी.
डॉ आशुतोष मिश्रा जी, ह्रदय से आभार।
प्रिय गीतिका जी, लघुकथा जो डंक न मारे, जो एकदम से चिकोटी न काटे या आँखों को चौंधिया न दे - समझ लें उसमे किसी तत्व की कमी रह गई. जान कर बहुत अच्छा लगा कि इस लघुकथा ने आपको कुछ पलों के लिए स्तब्ध किया। दिल से आभार।
भाई शुभ्रांशु जी - दिल से आभार।
बहुत बहुत शुक्रिया भाई बृजेश नीरज जी.
आपकी सकारात्मक टिप्प्णी से बेहद उत्साह मिला आदरणीय सौरभ भाई जी, दिल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2013 at 12:21am

आदरणीय योगराजभाईसाहब, आपकी प्रस्तुत लघुकथा कई प्रश्न लिए सामने आती है. कथा से कथ्य का लुप्त दिखना किन्तु उसको निहितार्थ से संभव कर दिखाना आपकी कथाओं की अद्भुत विशेषता रही है. संवाद पक्ष इतना सान्द्र होता है कि सारा कुछ मय वातावरण के बाहर निकल आता है.
यह तो हुई शिल्प की बात.

लघुकथा जिस तथ्य को उजागर करती है वह समाज की असहिष्णुता ही नहीं अव्यावहरिकता को भी स्वर देता हुआ है. नामर्दग़ी के नाम पर मिलता हुआ कटाक्ष सतही और उथला होने के बावज़ूद जन-मानस के अवचेत में कितने गहरे पैठ बना गया है कि सारा बुद्धि-विवेक, सारी वैचारिकता ही डूबी जाती हैं.


आपकी इस प्रस्तुति को मेरी सादर बधाइयाँ

Comment by बृजेश नीरज on November 12, 2013 at 11:27pm

समाज का विषैला रूप ही है जो आपकी कथा में मुखर हुआ है! समाज के साफ़ सुथरे आवरण के नीचे कितनी गन्दगी फैली है!

इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on November 12, 2013 at 10:20pm

आदरणीय योगराज जी, 

समाज के दोमुहेपन पर एक सुन्दर कथा....किसी घटना को अपने फ़ायदे के लिये कैसे इस्तमाल कर सकता है. 

सादर.

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 5:31pm

संदेश ऐसा कि स्मपूर्ण शरीर मे विष फैल गया|  आदरणीय योगराज जी! आपकी हर लघुकथा यही प्रभाव हर बार देती है कि पढ़ने के बाद कुछ क्षणों को स्तब्ध कर देती है| चकित हूँ आपकी सलीकेदार लेखन शैली पर|

बधाई आदरणीय !!    

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 12, 2013 at 4:21pm

आदरणीय योगराज सर ...बिलकुल हट कर है ये लघु कथा ..बेहद चुनिन्दा शब्दों से बयां की गया एक बेहद कड़वा सच ..इस रचना पर हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 12, 2013 at 1:07pm

अद्भुत आदरणीय योगराज जी ! सच में गागर में सागर भर दिया है आपने ! कोटि कोटि बधाई स्वीकारें...!

Comment by विजय मिश्र on November 11, 2013 at 5:57pm
योगराज भाई , क्या ही लज्जतदार फजीहत परोसा है ! बहुत खूब . कितने कम शब्दों में कितनी उत्कट बात कह डाली . बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
6 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
18 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service