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नफरत की बुआई जारी है
दहशत की कटाई जारी है
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ऊपर वाला है खौफज़दा
शैताँ की खुदाई जारी है
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गुड बंटना बंद हुआ जबसे
रिश्तों में खटाई जारी है
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मेजों पर अम्न की बातें हैं
सरहद पे लड़ाई जारी है
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दिल भी मैला रूह भी मैली
सड़कों की सफाई जारी है
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नादां को दानां का तमगा
ऐसी दानाई जारी है
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गुमशुद हैं दाना पंछी का
जालों की बुनाई जारी है
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बारिश है गैर यकीनी, पर
खेतों में जुताई जारी है
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दफना डाला हर जिंदा कुआँ
खंडहर में खुदाई जारी है
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दिल करता है धक धक धक धक
उनकी अँगड़ाई जारी है
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हर शब्द को गंभीर तरीके से एक माला में पाया है सर आपने | हर शे' र लाजवाब है | सादर नमन |
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय योगराज सर, बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने मिली है. बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. इस ग़ज़ल को पढ़कर समझ आ रहा है कि ग़ज़ल के शब्द नहीं बल्कि उनके प्रतीक बोलते है और फिर आपका हर अशआर जिस आयाम.../जिन आयामों पर खुलता है वह देखकर चकित हूँ. इस लाजवाब ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
नफरत की बुआई जारी है
दहशत की कटाई जारी है............ वाह वाह शानदार मतला हुआ है. हमेशा से नफरत के बीज बोने वाले आतंक और विप्लव की फसल काटते है जिसे भोली जनता समझ ही नहीं पाती है.
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ऊपर वाला है खौफज़दा
शैताँ की खुदाई जारी है........... वाह वाह ... शब्दों के चयन में प्रतीकों का बढ़िया प्रयोग हुआ है. ये शेर पाठक वैचारिक पृष्ठभूमि पर आधारित हो गया है. जिसका सोचने का दायरा जितना बड़ा होगा शेर उतना ही खुलता जाएगा. अद्भुत प्रयोग.
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गुड बंटना बंद हुआ जबसे
रिश्तों में खटाई जारी है............ गुड़ की मिठास का ध्वन्यार्थ रिश्तों की खटाई पर क्या खूब फिट बैठा है. वाकई आपकी संबंधों में जब से भौतिकवाद हावी हुआ है और खुशियों को बांटना भूल रहे है तो संबंधों में खटाई आनी ही है.
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मेजों पर अम्न की बातें हैं
सरहद पे लड़ाई जारी है................. कमाल कमाल .... दो पंक्तियों में बड़ी बात कह दी आपने. कमाल का शेर.... लाजवाब..... बड़ा शेर हुआ है. मानवतावादी दृष्टिकोण से लबरेज वसुधैव कुटुम्बकम के लिए प्रेरित करता और वैश्विक राजनीति की स्थिति की वास्तविकता को उजागर करता शेर. हासिल-ए-ग़ज़ल
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दिल भी मैला रूह भी मैली
सड़कों की सफाई जारी है................. शानदार शेर....... उला का विचार कई बार पढ़ चुका हूँ लेकिन सानी में आपके फन का कमाल देख रहा हूँ. उला का ऐसा जबरदस्त प्रयोग देखकर दिल खुश हो गया. छोटी बह्र की ग़ज़ल में ऐसे ही जादू पैदा होता है. अद्भुत. ऐसा बढ़िया व्यंग्य कि बस दिल से वाह वाह निकल रही है.
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नादां को दानां का तमगा
ऐसी दानाई जारी है.................... हा हा हा ...... ये आपने खूब कहा.... बात ऐसे दानां लोगों तक पहुंचनी चाहिए.
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गुमशुद हैं दाना पंछी का
जालों की बुनाई जारी है................. इस शेर पर स्पष्ट नहीं हूँ. संभवतः प्रतीकों को सही दिशा में खोल नहीं पा रहा हूँ. मागदर्शन निवेदित है.
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बारिश है गैर यकीनी, पर
खेतों में जुताई जारी है...................... सही कहा आपने .... यही हालात है. भारतीय किसान की यही विडंबना है. ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ इसलिए इस दर्द को महसूस भी कर रहा हूँ और इस स्थिति पर नम भी हुआ जा रहा हूँ.
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दफना डाला हर जिंदा कुआँ
खंडहर में खुदाई जारी है.................... ये है प्रतीकों का सटीक प्रयोग .... बिलकुल यही हुआ जा रहा है आजकल
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दिल करता है धक धक धक धक
उनकी अँगड़ाई जारी है.................. अय हय..... मासूम सा शेर..... अद्भुत चित्र खींचा है आपने. इस शेर पर दिल से दाद. ये अनुभवी कलम से निकला शेर है. वाकई शृंगार पर लिखना इतना सहज नहीं है. कमाल....
एक पाठक की हैसियत से इस बेमिसाल ग़ज़ल पर दिल से दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. ग़ज़ल के अभ्यासी की हैसियत से इस प्रस्तुति हेतु आभार और नमन
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!मुझे गज़ल की ज्यादा समझ नहीं फ़िर भी आपकी गज़ल का एक एक लफ़्ज़ मुझे अंदर तक छू गया!आज के हालात का इतना बेहतरीन नज़ारा पेश किया है कि मज़ा आ गया!पुनः बधाई!
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