For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गाँव की विधवाओं को सरकार की ओर से सहायता राशि वितरित की जा रही थी. तभी एक नौजवान विधवा अपने हिस्से की धनराशि लेने मंच की ओर बढ़ी, जिसे देख नेता जी ने सरपंच के कान में धीरे कहा,
"ये लड़की कौन है ?"
"
ये नंदू लुहार की बहू है नेता जी."
"अरे भई इसको तो बाकियों से ज्यादा पैसा मिलना चाहिए था."
"वो क्यों नेता जी ?"
"अरे
मुखिया जी, ज़रा बॉडी तो देखिए ससुरी की."  

 

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 2:27pm

लघुकथा आपको पसंद आई, दिल से आभार व्यक्त करता हूँ माननीया मीना पाठक जी.

Comment by Meena Pathak on August 6, 2013 at 1:42pm

आखरी पंक्ति दिल पर गोली की तरह लगी, ना जाने कब छुटकारा मिलेगा देश को ऐसे नेताओं से ....बेहद कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आप ने, प्रभावपूर्ण लघुकथा के लिए  नमन करती हूँ आप को .. बधाई स्वीकारें आदरणीय 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 12:34pm

लघुकथा पसंद करने हेतु सादर आभार अग्रज लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2013 at 12:22pm

"अरे मुखिया जी, ज़रा बॉडी तो देखिए ससुरी की." इस एक वाक्य ने शेष अनकही कहानी कह दी | वाह !

गागर में सागर की कहावत को चरितार्थ करती सुन्दर लघुत्तम कहानी | इससे नेताजी का चरित्र सामने आ गया | ऐसी प्रभावपूर्ण लघु कहानी की लिए हार्दिक आभार स्वीकारे श्री योगराज प्रभाकर जी | सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 9:40am

गीतिका जी, आपको लघुकथा पसंद आई, मेरा श्रम सार्थक हुआ. सादर धन्यवाद.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 9:40am

लघुकथा पसंद करने के लिए दिल से आभार वसुंधरा बहन.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 9:39am

सादर धन्यवाद श्री अरविन्द अम्बर जी

Comment by वेदिका on August 5, 2013 at 8:27pm

प्रभावोत्पादक लघु कथा प्रस्तुति करण|

न कुछ कम न ज्यादा, संतुलित रचना|

और विषय जो उठाया गया है अटूट पीर और सच्चाई भरा है|

नमन आपकी लेखनी को आदरणीय योगराज जी!   

Comment by Vasundhara pandey on August 5, 2013 at 7:29pm

उफ्फ...ये  हैं अभी तक भी अपने समाज की सेवायें...
लघु कथा बेहद भायी..गागर में सागर है समाई...

Comment by arvind ambar on July 27, 2013 at 10:28am

samsamaayik sajeev chitran..........waaaaaaaaaaaah

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service