"अबे तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया ? बेगानों का साथ देकर अपनों से गद्दारी करेगा?
"वो साले बेगाने ज़रूर हैं, लेकिन दिहाड़ी भी तो डबल देते हैं."
Comment
वाह ! एक और गज़ब गज़ब और गज़ब |
आपको लघुकथा पसंद आई, मेरा श्रम सार्थक हुआ प्रिय वसुंधरा जी.
हार्दिक आभार भाई अमन कुमार जी.
आदरणीय योगराजभाईसाहब, ये चुपके से कब सिक्सर मार दिया आपने ??? .. वाऽऽऽउ ! .. और सिक्सर भी कभी छुपने वाली एफ़ोर्ट होती है !!
इसे कहते हैं लघुकथा और लघुकथा का अंदाज़ !
कहन ऐसी कि एक भी शब्द इधर-उधर हुआ नहीं कि लघुकथा का संतुलन ही बिगड़ा. न एक शब्द ज्यादा, न एक शब्द कम. संप्रेषणीयता ऐसी कि कोई आँख बन्द कर ले और किसी से पढ़वा ले.. समझ में आ जायेगा कि लघुकथा कहना क्या चाहती है. कथा का सत्त मग़ज़ के मक्खन में गरम छुरी की तरह पार होता आता है.
उम्दा बानग़ी.. हक़ीक़तबयानी यों होती है.
बधाई-बधाई..
सादर
आद० डॉ प्राची सिंह जी, क्योंकि लघुकथा में बात बहुत कम शब्दों में कहने होती है अत: अन्य गुणों के साथ साथ इसके शिल्प में कसावट होना बेहद ज़रूरी होता है. कॉलेज के दिनों में हमारे एक प्रोफ़ेसर कहा करते थे कि लघुकथा की बुनावट भी किसी ग़ज़ल से कम नहीं, क्योंकि एक भी शब्द फालतू ले लेने से लघुकथा बे-वज़न हो जाती है. आपने मेरी कोशिश को सराहा और लघुकथा को पसंद किया, मैं दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.
आपने रचना के मर्म को बखूबी समझा है भाई जीतेंद्र जीत जी, दिल से शुक्रिया.
रचना पसंद करने के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ प्रिय महिमा श्री जी.
दिल से आभार आद० विजय मिश्र जी.
भाई शिज्जू शकूर जी, आप रचना पर आये उर अपनी बहुमूल्य राये दी - हार्दिक आभार.
सादर धन्यवाद वंदना जी.
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