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जिसके संग निडर

गुजर जाती है मेरी रात

सबकी नज़रों से दूर...

 

मैं धरा,  

हर पल नयी

नए स्वप्नों को जन्म देती

मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’

चलो,

फिर से उसकी बात करें

 

वह मेरी किताब है

उसका एक-एक पन्ना

मेरी जुबान पर

 

उसे पढने की

मेरी प्यास का

कोई अंत नहीं

 

फिर से कहो न

क्या… कहा...चाँद… क्या..?

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Vasundhara pandey on August 30, 2013 at 8:51am

आदरणीय वर्मा जी , आदरणीय श्याम जी ,आदरणीय केवल प्रसाद जी , प्रिय माहिमा , आदरणीय जितेन्द्र जी , आदरणीय विजय जी ...आप सबको ये रचना पसंद आई ,हृदयतल से सादर आभार ...आपसबका स्नेह यूँही बना रहे ...!!

Comment by vijay nikore on August 30, 2013 at 7:58am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए साधुवाद, आदरणीया वसुंधरा जी।

 

वि्जय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 30, 2013 at 12:13am

सुंदर भावनात्मक रचना, हार्दिक बधाई आदरणीया वसुंधरा जी

Comment by MAHIMA SHREE on August 29, 2013 at 11:47pm

बेहद कोमल ... बधाई आपको

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 9:02pm

आ0 बसुन्धरा जी, सुन्दर भावपूर्ण रचना। हृदयतल से हार्दिक बधाई। सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on August 29, 2013 at 12:13pm

बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें

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