जिसके संग निडर
गुजर जाती है मेरी रात
सबकी नज़रों से दूर...
मैं धरा,
हर पल नयी
नए स्वप्नों को जन्म देती
मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’
चलो,
फिर से उसकी बात करें
वह मेरी किताब है
उसका एक-एक पन्ना
मेरी जुबान पर
उसे पढने की
मेरी प्यास का
कोई अंत नहीं
फिर से कहो न
क्या… कहा...चाँद… क्या..?
(मौलिक व…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 29, 2013 at 11:00am — 16 Comments
सच कहूँ
तो मुझे कभी समझ में नही आया
कि जीवन में वह कौन सा क्षण था
जब पहली बार मिले थे तुम ...
लगे थे मित्र से भी कुछ अधिक वल्लभ ,
भाई से भी कुछ अधिक अपने ,
सखा से भी कुछ अधिक स्नेही,
पिता से भी कुछ अधिक पवित्र !
यों तो सबके दुलारे हो
पर मुझे कुछ अधिक प्यारे हो
जो नहीं आता मुझे
सब सिखलाते हो
रास्ता दिखाते हो मेरी
नादानियों पर मुस्कुराते हो
आशीष बरसाते हो
हे…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 27, 2013 at 7:30am — 2 Comments
अनन्तता में
धकेल कर मुझ निर्वसना को
कोई चुरा ले गया है मेरे शब्द..
मेरी ध्वनियाँ... मेरे चित्र..
जा बैठा है ना जाने
किस कदम्ब की शाख पर
कैसे पुकारूँ सखी...मैं तो गई... !!
(मौलिक व अप्रकाशित )
Added by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
न मौसम बदलता है,
न एहसान चढाता है
न जलता-जलाता,
बस खुद को लुटाता है
समझता है .मेरी व्यथा
जी जान से
मेरी थकान मिटाता है
दुबला जाता कैसे
मेरे गम में
और पाकर मुझे
कुप्पे सा फूल जाता है
चाँद की बात न कर
वह तो हर रात नया रूप
यौवन भरपूर..
मुझे रिझाने में जुटा
उसका यह सिलसिला तो
सदियों से है...
उसके…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 6, 2013 at 1:30pm — 25 Comments
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