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ग़ज़ल : मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,

भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई शस्य से वंचित हुआ,
              (शस्य = अन्न)
क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,

सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 11:28am

आदरणीय श्री सौरभ सर जी आप सत्य कह रहे हैं, सहमत हूँ मैंने इस ग़ज़ल को समय नहीं दिया बहुत ही कम और थोड़े से समय में ही पोस्ट कर दी, भविष्य में आपकी बात का ध्यान रखूँगा. आपका अनुमोदन सदैव कुछ न कुछ सीख दे ही जाता है, आपका अनुमोदन उर्जा का वह श्रोत है जो अच्छा लेखन लिखने को अग्रसर करता है. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 16, 2013 at 11:08am

क्या कमाल किया है आपने. हाँ, अपने इस कमाल पर आपने समय नहीं दिया है. यह भी दिखा है.

वर्ना सामान्य शब्दपूरित प्रस्तुत ग़ज़ल में आप शस्य  की चिप्पी या पेंवन न लगा देते. अन्न को अन्न ही रहने देते.  .. :-)))) 

मतले में अभी गुंजाइश है. बहुत कुछ कहना चाहता है यह मतला. काश आपने उसे कहने दिया होता.

किन्तु, कुल प्रयास पर बहुत-बहुत बधाई अरुन अनन्त भाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:51am

आदरणीय राज नवादवी साहब आपकी टिपण्णी ने दिल खुश कर दिया, आदरणीय मेरे लिए इससे बड़ी बात क्या होगी कि मेरी ग़ज़ल पढ़कर आपको आदरणीय दुष्यंत सर जी की ग़ज़लों का ध्यान आ गया हो. बहुत बहुत धन्यवाद आपका.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:49am

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर सर आशीष बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:48am

आदरणीय वीनस भाई जी काफी समय के बाद आपकी नजरे-ए-इनायत हुई है, आपका ग़ज़ल तक पहुँचना ही मन प्रसन्न कर गया. भाई जी धीरे धीरे प्रयासरत हूँ अच्छा लिखने की, जो कुछ भी सीखा है चाहे वो ग़ज़ल हो, छंद हो, कविता हो सब इसी मंच से सीखा है, आप बड़ों के सानिध्य में रहकर सीखा है. कोशिश रहेगी कि आप सभी को निराश न करूँ. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:45am

धन्यवाद आदरणीय जीतेन्द्र भाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:43am

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आशीष मिला ग़ज़ल सफल हुई आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:41am

हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना रमानी जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:40am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर आपकी उर्जा स्वरुप टिपण्णी लेखनी को बल प्रदान करती है स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 10:39am

हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

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