बहर: हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,
अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,
लगे जो ठीक तुझको कर समर्पित है तुझे जीवन,
नमन तुझको हमेशा दिल तेरी करता नमस्या है,
अमावश सी अँधेरी रात चाहत के घरौंदे में,
बिछी आँगन में काँटों से बनी कोई पयस्या है,
उठा तूफान भीषण टूटके बिजली गिरी दिल पर,
भरा सागर दुखों का है बही गम की रहस्या है,
हुई है वर्फबारी गर्म यादों पर निगाहों की,
लगी दीवार पे दिल की हुई कच्ची वयस्या है.
शब्दार्थ
नमस्या : पूजा, पयस्या : घास
रहस्या : नदी, वयस्या : ईंट
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
प्रिय अनंत जी ..सीखने को नए शब्द ..और बेहतरीन भावों को संजोये ..... बढ़िया ग़ज़ल ......जय हिन्द
जय श्री राधे
भ्रमर ५
अति सुन्दर, बधाई आदरणीय अरून जी।
सादर,
विजय निकोर
उठा तूफान भीषण टूटके बिजली गिरी दिल पर,
भरा सागर दुखों का है बही गम की रहस्या है,.........वाह! क्या कहने, जानलेवा शेर
बहुत बहुत खुबसूरत गजल , दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अरुण अनंत जी
खूबसूरत और चुने हुए शब्द आपने खोजे और हमें इनसे अवगत कराया एक सुंदर सी गजल का रूप देकर|
आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी!
प्रिय अरुण जी
पहले शेर ने ही मुग्ध कर दिया ...
मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,
अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,
बहुत खूबसूरत गज़ल
चुन चुन के हमकवाफी शब्द सम्मिलित किये हैं आपने...इसके लिए विशेष बधाई
हार्दिक आभार आदरणीया वंदना जी
हार्दिक आभार आदरणीया वसुधंरा पाण्डेय जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत बहुत आभार आदरणीय बृजेश भाई जी आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
हार्दिक आभार केवल भाई स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी भाई राम शिरोमणि पाठक जी
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