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ग़ज़ल- सारथी || बहुत चर्चा हमारा हो रहा है ||

बहुत चर्चा हमारा हो रहा है

इशारों में इशारा हो रहा है /१  

लकीरें हाथ की बेकार हैं सब 

समझिये बस गुजारा हो रहा है /२ 

न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या 

बदन का खून खारा हो रहा है /३ 

गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं

कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४  

तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना 

तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५ 
.............................................
बह्र : १२२२ १२२२ १२२ 
*सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on October 27, 2013 at 9:52pm

आदरणीया  Priyanka singh जी .... ह्रदय तल से अनेक धन्यवाद आपका ! सादर :)

Comment by Priyanka singh on October 27, 2013 at 8:58pm

वाह वाह बहुत खूब ...लाजवाब रचना ...बधाई आपको ....

Comment by Saarthi Baidyanath on October 3, 2013 at 12:05pm

 विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय :
आदरणीय, प्रथमतया नमन स्वीकार करें ! जी, प्रयासरत हूँ कि कुछ अच्छा लिख सकूँ !..आपका स्नेह मिला ..हर्षित हूँ !...स्नेह देते रहिएगा ...अनेक धन्यवाद आपका ...नमन सहित :)

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 2, 2013 at 6:59pm
भाई वैद्यनाथ सारथी जी! आपने जिस सादगी के साथ इतनी रंगीन बात कही है उसके लिये आपको बधाई। आपके इस गजल से एक समर्थ कलमकार की महक आ रही है, उस कलमकार को नमन!
Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 5:01pm

आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी :
माननीय...आपकी टिप्पणी असाधारण है मुझ साधारण कलमकार के लिए !..निश्चितरूप से आपका साथ मिलने से ..आपका आशीर्वाद मिलने से मेरा मनोबल ऊँचा हुआ है ...! हौसलाअफजाई व दाद के लिए असंख्य आभार ..ह्रदय से ! :)

Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 4:57pm

डॉक्टर प्राची सिंह:
सादर नमन ..महोदया !...आपने ग़ज़ल के अनछुए एहसासात को महसूस किया है ...ह्रदय से आभार व अभिनन्दन व्यक्त करता हूँ!विनम्र धन्यवाद ....! स्नेह देते रहिएगा :)

Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 4:53pm

श्री आशीष नैथानी 'सलिल ':
श्रीमान, सबसे पहले तो आपको नमन करता हूँ ... उत्तराखंड की पावन भूमि को भी प्रणाम करता हूँ ..जहां से आप हैं !..आपने ग़ज़ल को अपना स्नेह दिया .. एक नवोदित के मनोबल के लिए और क्या चाहिए ... ! बहुत बहुत आभार आपका :)

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:29pm

लकीरें हाथ की लेकर.... गये हो

गरीबी में गुजारा....... हो रहा है |

 

गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं

कोई जुगनू... सितारा हो रहा है |

 आदरणीय सारथी जी, बेहतरीन गजल से विविध बिम्ब उकेर कर आपने नये प्रतिमान गढे हैं। हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2013 at 8:33pm

बहुत खूबसूरत गज़ल आ० बैद्य नाथ 'सारथी' जी 

हर शेर पर ढेर ढेर दाद क़ुबूल कीजिये.. 

इतनी कोमल मधुर ग़ज़लें कम ही पढ़ने को मिलती  हैं 

बहुत बहुत शुभकामनाएँ 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:38am

लकीरें हाथ की लेकर.... गये हो

गरीबी में गुजारा....... हो रहा है |

हकीक़त... रूह को तड़पा रही है

बदन का खून खारा.. हो रहा है |

 

गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं

कोई जुगनू... सितारा हो रहा है |

वाह वाह वाह
हर शेर लाजवाब है भाई !!!

कृपया ध्यान दे...

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