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देख तो ले तिलमिला कर ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122         2122

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

ज़िंदगी का बोझ सर पे

चल रहा हूँ लड़खड़ा कर

मैने सच को सच कहा है

तू गिला से अब मिला कर

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर

हाथ चाहे तू झटक दे

मैने रक्खा दिल मिलाकर

ग़ैर के आंसू कभी पी

देख तो ले तिलमिला कर

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर 

ले धनक से रंग तू भी

फूल के जैसे खिला कर

*********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 5:31pm

आदरणीया शशि पुरवार जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 5:30pm

आदरणीय बैद्य नाथ भाई , आपने गज़ल की सराहाना की , मेरी मेहनत सफल  हुई , उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 5:27pm

आदरणीय अरुण भाई , गज़ल पर आपके उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

Comment by shashi purwar on October 16, 2013 at 5:05pm

waah bahut khoob kya baat hai

Comment by Saarthi Baidyanath on October 16, 2013 at 1:23pm

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर.....बेजोड़ अशआर हैं जनाब ...उम्दा ग़ज़ल के तहे दिल से मुबारकबाद !..नमन सहित :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:00pm

वाह आदरणीय गिरिराज जी वाह छोटी बहर में बेमिसाल कामयाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर बेहद उम्दा हैं ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 11:25am

आदरणीय गणेश भाई . रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह वर्धन और मार्ग दर्शन करती रही हैं , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !!

दो शेरों को आपने नया रूप, नया भाव  दिया है आपका शुक्रिया !!!! नोट करके रख लिया इन्हे भी !!! पुनः शुक्रिया !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 11:21am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 11:19am

आदरणीय नीलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया !!!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 11:03am

मैने सच को सच कहा है
झूठ को तू अलविदा कर

हाथ चाहे तू झटक दे

किंतु दिल को रख मिलाकर 

वाह आदरणीय वाह, छोटी बहर पर कमाल की ग़ज़ल कही है, सभी अशआर अच्छे लगें, बहुत बहुत बधाई | 

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