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मीठी सी एक मनुहार................

पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
 भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली  चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर  की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली  हो जाये तो
बंद मत करना
घुटन सी होती हैं मुझे
आत्मा हूँ तेरी में
इतनी तो कर ही सकती हूँ
मैं  मीठी सी एक  मनुहार ......

.
."मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:52pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना आदरणीया

बधाई हो

Comment by vijay nikore on October 19, 2013 at 1:05pm

अति सुन्दर भाव हैं...बधाई, आदरणीया सविता जी।

 

सादर, विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 19, 2013 at 12:04pm

दिल की बात सुनना चाहिए | कहते है आत्मा में ईश् का अंश है | भीतर के किवाड खोल, आत्मा की मनुहार सुन -

बहुत सुन्दर भाव् रचना पगी है - हार्दिक बधाई सविता अग्रवाल जी 

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