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टूटा फूटा खिलौना ( अतुकांत ) गिरिराज भंडारी

टूटा फूटा

खिलौना

फेक देने लायक

खेलता बच्चा

खुश है

आनंदित है

खिलखिला रहा है

बावज़ूद इसके

खिलौना टूटा है

आनंद सच्चा है

समूचा है

क्यों कि आनंद वस्तु में नही

अपने भीतर है

शायद जानता ये बच्चा है !!!!

और

छीन लेने से

बेमोल , टूटे खिलौने को

चिल्लाता है

रोता है

आँसू भी बहाता है

सच्चे सच्चे

हम समझदार हैं

व्यर्थ की वस्तु के लिये

रोना हमारे लिये निरा व्यर्थ है

बच्चा जानता है लेकिन

सच्चा आनंद देती

उस टूटे फूटे

खिलौने का   

उसके लिये क्या अर्थ है

सोचता हूँ कभी कभी

क्या समझदारी

आनंद छीन लेती है ?

*****************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 3:20pm

ठगा सा रह गया आपकी इस रचना पर और उसकी प्रस्‍तुति पर । समझदारी आनंद छीनती है, आपकी रचना के परिप्रेक्ष्‍य में विचार करता हूं तो ऐसा ही लगता है, सादर


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 1:27pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 28, 2013 at 9:36am

क्यों कि आनंद वस्तु में नही

अपने भीतर है

शायद जानता ये बच्चा है !!!!

बहुत गहरी सच्चाई, सुंदर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 8:16am

आदरणीया वन्दना जी , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 8:15am

आदरणीय सुशील भाई , आपने मेरी चिंतन के मर्म को छू लिया , आदरणीय आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 8:10am

आदरणीय विशाल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 8:10am

आदरणीय अतेन्द भाई , आनंद मे जी पाना ही जानने का सबूत  होता है , और आनंदित न रह् पाना ही अज्ञानता का ,यही बात चिंतन से समझाने का प्रयास किया हूँ !!!! रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 8:05am

आदरणीय बैद्यनाथा भाई , चिंतन आपको भा गये , मुझे बहुत खुशी हुई !!! ये खुशी देने के लिये आपका आभारी हूँ !!!!

Comment by vandana on October 28, 2013 at 6:59am

सोचता हूँ कभी कभी

क्या समझदारी

आनंद छीन लेती है ?

सार्थक रचना ....हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज सर 

Comment by Sushil.Joshi on October 28, 2013 at 5:17am

क्या समझदारी

आनंद छीन लेती है ?............ इस सवाल को छोड़ती हुई रचना सचमुच सोचने पर मजबूर कर देती है...... और फिर मन कहता है शायद 'हाँ'............. क्योंकि तभी एक नासमझ बच्चा टूटे फूटे खिलौने से भी आनंदित हो उठता है और हम शायद उसे देख मुँह मोड़ते हैं.......... बच्चे को मनोभावों को दर्शाती एक सुंदर रचना हेतु बधाई आ0 गिरिराज जी....

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