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नदी मर गयी,

बहुत तड़पने के बाद.

घाव मवादी था.

आती है अब महक.

अब शहर में गिद्ध नहीं आते.

कुत्ते लगाते हैं दौड़

उसकी मृत देह पर

फिर भाग खड़े होते हैं.

नदी जवान थी, खूबसूरत.

वह थी चिर यौवना.

भर देती थी जीवन से.

खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,

छूकर कभी इस किनारे को

कभी उस किनारे को.

उछालती जल, करती कल्लोल,

भिंगोती तट के पीपल को.

पुरबाई में पीपल का पेड़

झूम कर करता था अभिषेक.

करता अपने प्रिय पातों का अर्पण

प्रेम के भेट स्वरुप ..

दाह से पहले , ठंढे शीतल जल में

जब मृत शरीर को कराते  थे स्नान,

आत्मा तृप्त हो उठती थी .

चहचहा उठता था  घने पीपल पर

बैठा पक्षियों का समूह ,

मानो गवाही देता था

स्वर्ग की सीढ़ी के उतरने का.

जीवन तभी तक है

जब तक गति है.

नदी किनारे रहने वाला हंसों का जोड़ा

उड़ गया ....

नये  ठौर की तलाश में ..

वहां अब उग आयीं है

कुछ  झुग्गियां

जहाँ कुत्ते नहीं रहते

रहते है आदमी

जिन्हें मंजूर होता है

नरक ,

दो वक्त की रोटियों के बदले

शहर बड़ा हो गया

और नदी मर गयी ..

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on January 10, 2014 at 7:30pm

कविता को पसंद करने के लिए एवं विषय को समर्थन देने के लिए दिल से आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 10, 2014 at 9:42am

शहर की संजीवनी रही नदी का सिमटते सिकुढ़ते सूखते जाना और नदी की मृतप्राय देह पर बस्तियों का उग आना जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत हुआ है..उस पर निःशब्द हूँ .

बहुत उन्नत प्रस्तुति 

हार्दिक बधाई 

Comment by Neeraj Neer on January 9, 2014 at 8:55am

आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी ने रचना को पूर्णता प्रदान कर दी ... आपकी प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा रहती है .. सादर आभार उत्साह वर्धन के लिए .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2014 at 11:59pm

भाई नीरजजी.. इस कविता की अंतर्दशा ने भीतर तक सिहरा दिया है.

मैं आपकी पंक्तियों के साथ स्वर्णरेखा और हुण्डरू की यात्रा कर आया और वाकई हरियाली को लगातार भूरा रंग में परिणत होते देखा है. शहर को नदी का गर्भ भरते देखा है और उस बलत्कृता को लगातार मरते हुए देखा-महसूसा है.. सिकिदरी में.
आपकी इस उन्नत भावदशा की प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई.
शुभ-शुभ

Comment by Neeraj Neer on January 6, 2014 at 8:54am

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी किन शब्दों में आपका आभार प्रकट करूँ .. बहुत बहुत धन्यवाद इतना उत्साह वर्धन के लिए ..

Comment by Neeraj Neer on January 6, 2014 at 8:51am
आदरणीय विजय निकोरे साहब आपका हार्दिक आभार ..
Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 8:28pm

वाह !! बहुत सुंदर !! , शब्द कुछ कम पड़ रहे है शायद इस रचना की तारीफ के लिए , बहुत बहुत सुंदर रचना , बधाई आपको आ0 नीरज जी । 

Comment by vijay nikore on January 5, 2014 at 10:41am

बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Neeraj Neer on January 5, 2014 at 9:18am

आदरणीय अरुण शर्मा जी आपका हार्दिक धन्यवाद .

Comment by Neeraj Neer on January 5, 2014 at 9:17am

हार्दिक आभार आदरणीय भाई बृजेश  नीरज जी .. 

कृपया ध्यान दे...

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