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गरल रख पास शिव जैसा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222

हमारे   दुख  दिखाई  कब  दिए  हैं  देवताओं को
हमेशा  आँकते वो   कम  हमारी  आपदाओं  को

*
मरें  या  जी रहे  हों हम  उन्हें  पूजा  करें  हरदम
न जब भी पूज पाए हम निकल आए सजाओं को

*
नहीं फिर भी हुए खुश वो भले ही सब किया अर्पण
गरल रख पास शिव जैसा सदा सौपा सुधाओं को

*
पुकारा  जब  गया  उनको  दुखों से  हो  परेशा ढब
किया है  अनसुना बरबस  हमारी सब सदाओं को

*
लगा करता जरूरी नित न जाने क्यों उन्हे अब भी
हमारे  संकटों  से   बढ़   नचाना  अप्सराओं   को

*
कभी जब हम जुटा लाए  दिया  कोई करम करके
बुझाने  भेजते  उस को  यहाँ  सौ-सौ  हवाओं  को

*
चलो अब तो बगावत कर तजें हम पूजना उनको
रहेंगे कब तलक  बोलो  तरसते  हम दुआओं को

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 8, 2014 at 8:19am

आदरणीय लक्ष्मण जी ग़ज़ल पर आपकी मेहनत रंग ला रही है बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 7, 2014 at 11:45pm

बस एक चीज खटक रही है भाई..मेरे हिसाब से सुधा का कोई बहुवचन नहीं होता..हालांकि भाव के आधार पर सुधा के अनेक रूप भले ही हो जाय किन्तु वह तुल्यता ही रखते हैं...सुधा सम और सुधा होना दो अलग अलग चीजें हैं

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 7, 2014 at 11:42pm

मतला से लेकर मकता तक..सरापा बेहतरीन गजल...देवता तो अपने ही कर्मों का फल देते है न भाई..हम इश्वर को पूजते हैं क्योंकि हम उनसे प्रेम करते हैं..उनसे डरते थोड़े ही हैं..आपको इस गजल पर मेरी ओर से १०० में ९० अंक..१० अंक भगवान को देना है..जिसने इतने  अच्छे गजल से रूबरू करवाया..बधाई हो..


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2014 at 6:56pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल बहुत खूब सूरत कही है , आपको मेरी दिली बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on March 7, 2014 at 4:20pm
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2014 at 6:00pm

आदरणीय अनुपमा जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए दिली आभार .आप जैसे सभी प्रबुद्ध जानो का सानिंध्य और उत्साहवर्धन ही लेखन में सुधर को प्रेरित करता है . अनुरोध है कि कमियों कि ओर भी इसारा करें जिससे लेखन को निखार सकूं . धन्यवाद .

Comment by annapurna bajpai on March 6, 2014 at 4:25pm

कभी जब हम जुटा लाए  दिया  कोई करम करके
बुझाने  भेजते  उस को  यहाँ  सौ-सौ  हवाओं  को.............................. बहुत खूबसूरत अशर 

*
चलो अब तो बगावत कर तजें हम पूजना उनको
रहेंगे कब तलक  बोलो  तरसते  हम दुआओं को................................ सही कहा , खूब हर एक अशर लाजवाब हुआ है , आ0                                                                                                       धामी जी बधाई आपको । 

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