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  “अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”

“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”

" हाँ भाई..! रामेश्वर ,  दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 10:18am

आपको रचना रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय गुमनाम जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 10:16am

रचना की सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण जी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 10:13am

आप का कहना बिलकुल सही है आदरणीय अखंड जी, यह सब हकीकत ही है. आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 10:03am

रचना पर आपकी उपस्थिति से बहुत मनोबल मिलता है आदरणीया कुंती जी. आपका हार्दिक आभार, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 7, 2014 at 11:03pm

न जाने क्या कमी रह गई "

आदरणीय जितेन्द्र जी 

सादर 

बढ़िया कथा 

घर घर की व्यथा 

बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 9:31pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई,

बचपन में सही संस्कार न देने का परिणाम " अंतिम संस्कार " के समय सामने आया है !!!!!

चारो बेटे लड़  रहे, सब को  धन  से प्यार ।

लाश पड़ी है पिता की, कौन करे संस्कार ॥ 

सीख देती लघु कथा की हार्दिक बधाई ।

 

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 7, 2014 at 7:52pm
achchhi lagi ,,,,,,,,,,,,,,
Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2014 at 4:44pm
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको
Comment by Akhand Gahmari on April 7, 2014 at 4:34pm

हकीकत की हकीकत

Comment by coontee mukerji on April 7, 2014 at 3:51pm

शायद इसी को दुनियादारी कहते हैं.सादर

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