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कुछ दोहे आज के हालात पर (भाग - 2)

रट्टू तोते की तरह, क्यों रटते दिन रात

दादा जी का नाम भी, गूगल पर मिलि जात


त्रेता के सज्जन कहैं, सबके दाता राम
कलियुग के ढोंगी कहैं, हमरे आशाराम


दिन भर आगे सेठ के, डरि के दुम्म हिलायँ
साँझ ढले पव्वा लगै, अउर शेर हुइ जायँ


हफ्ते में तो चार दिन, काटैं मदिरा माँस
बाकी के कुल तीन दिन, धरम करम उपवास


अबला से सबला हुई, नाच नचावैं आज
बाबू जी की खोपड़ी, बजा रहीं ज्यों साज


गुरु से चेला बीस अब, देय रहा है ज्ञान
इंटरनेट से पाय के, गूगल का वरदान


सुना लॉटरी लग गयी, उमड़ पड़ा है प्यार
पैदा देखो हो रहे, रोजय रिश्तेदार


कालहिं आयी ब्याह के, आज अलग संसार
कुल को अब नहि मानती, ये कलजुगही नार


- विशाल चर्चित
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 14, 2014 at 10:10pm

अन्नपूर्णा जी आपका हृदय से आभार !!!!

Comment by विजय मिश्र on April 14, 2014 at 4:15pm
सराहना योग्य , आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:26pm

आ. विशाल भाई , हालिया स्थिति पर बहुत सुन्दर व्यंग्य !! सभी दोहे बहुत अच्छे लगे , बधाइयाँ!! 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 11, 2014 at 1:00pm

तीखा व्यंग्य है , नर नारी दोनों पर । हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 11, 2014 at 12:07am

बहुत सुंदर दोहावली, आजकल यही सब कुछ हो रहा है.  बधाई आदरणीय विशाल जी

Comment by coontee mukerji on April 10, 2014 at 9:49pm

बहुत सुंदर दोहे...हार्दिक बधाई

Comment by Meena Pathak on April 10, 2014 at 4:32pm

क्या बात है ... बहुत सुन्दर दोहे , बहुत बहुत बधाई आप को 

Comment by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 1:53pm

बहुत खूब ,  सामयिक परिवेश पर बहुत सुंदर दोहे ,  बधाई आपको । आ0 विशाल चर्चित जी । 

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