दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा
हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा
साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग
खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा
सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा
शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर
हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा
छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- विशाल चर्चित
Comment
यानि जून के करीब प्रथम हफ़्ते के आसपास के बाद अपने अनन्य भाई अगस्त के आखिरी दिन देहरी पर आये हैं.. :-)))
आपकी गरिमामय उपस्थिति से हम सभी हर समय लाभान्वित व सम्मानित होना चाहते हैं, विशाल भाई ..
शुभ-शुभ
हृदय से आभारी हूं एवं प्रणाम करता हूं आपके स्नेह को सौरभ सर कि आपने सराहना के साथ ही एक दोष भी इंगित किया.... इस बहाने मुझे इस दोष के बारे में जानने का अवसर मिला.... सच्ची में मैं तो इस दोष के बारे में जानता ही नहीं था....!!!!
अय हय.. अय हय !
कमाल तो करते ही हैं, भाई, अब आप धमाल भी करने लगे हैं ! .. हा हा हा..
इस ग़ज़ल पर बधाई-बधाई-बधाई !!
अलबत्ता, सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में तथा हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा... इन दो मिसरों को छोड़ दें तो अरुज़ के लिहाज से भी ग़ज़ल शानदार हुई है.
उपरोक्त मिसरों में शिकस्ते नारवा का दोष आ गया है.
शुभेच्छाएँ
निलेश भाई, श्याम भाई जी, अभिनव भाई, गिरिराज सर जी, कुन्ती जी, जितेन्द्र भाई, गोपाल सर जी, बृजेश भाई एवं वन्दना जी.... आप सभी का हृदय से आभार !!!
वाह बहुत खूब !!! आदरणीय
वाह! बहुत खूब! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
मित्र
क्या लाजवाब मक्ता है i अति सुन्दर i
बहुत सुंदर गजल आदरणीय विशाल जी, बधाई आपको
सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा.....क्या बात है.
आदरणीय विशाल भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥
छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा ------------ मक्ते के लिये विशेष बधाइयाँ ॥
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