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माँ तू सुनती क्यों नहीं

माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
वो घुटनों पे चलना
वो आँखों को मलना
वो मिटटी को खाना
बिना सुर के गाना
वो चिल्ला के कहना
मुझे रोटी देना
आज फिर चूल्हे पे पानी
तूँ पकाती क्यों नहीं
माँ तूँ सुनती क्यूँ नहीं
वो तेरी हथेली
में कितनी पहेली
वो मेरा कसकना
वो तेरा सिसकना
वो ममता की छाया
मुझे याद आया
वो मुस्कान तेरी
वो पेशानी मेरी
आज फिर से बोशा
सजाती क्यूँ नहीं
माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार चौबे मनु

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Comment

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Comment by vijay on January 30, 2015 at 9:56pm
धन्यवाद
Comment by Hari Prakash Dubey on January 30, 2015 at 9:26pm

सुन्दर प्रस्तुति  आ० विजय कुमार चौबे जी ,हार्दिक बधाई आपको !

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