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लघुकथा : सोशल स्टडी (गणेश जी बागी)

रसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली गयी .

स्टडी रिपोर्ट में गाँव, गलियां, गाय, गोबर, गेहूं, खेत, खलिहान, किसान, नदी, कुआँ इत्यादि के बारे में जिक्र के साथ एक बात प्रमुखता के साथ लिखी गयी.

“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : गैरत

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 3, 2015 at 8:01pm

 आदरणीय बागी जी. यह आज की भौतिकता ही तो है, जो युवा वर्ग को सिर्फ किताबी कीड़ा बनाए जा रही है,संवेदनशीलता से कोसो दूर. बस! सीधे परिणाम को लक्ष्य बना रखा है आजकल के युवाओं ने..बहुत-बहुत बधाई, लघुकथा पर आदरणीय बागी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 6:45pm

गरीबी , मजबूरी को बिना ख़ुद गरीब , मजबूर हुये दूर से कोई नही जान सकता , फिर ये बच्चे को सोने का चम्मच लिये पैदा हुये लगते हैं , कहाँ जान पाते । आज की शिक्षा व्यवस्था पर भी बढिया व्यंग्य है । बधाई , आदरणीय बागी भाई जी ।

Comment by kanta roy on February 3, 2015 at 1:54pm
शहर के नामी काॅलेज के छात्र समस्त भौतिकता का अध्ययन तो कर बैठे लेकिन गरीब की झोपड़ी के टपकते पानी का मर्म ना जान पाये ।सब देखा वही ना देखा जो देखने योग्य था ।समाज में आज के युवा वर्ग यथार्थ से दूर दिखावे की दुनिया में ऐसे लिप्त हुए है कि जहाँ जमीनी हकीकत का कोई वास्ता नहीं । आ. बागी जी सदा की तरह लाजवाब है आपकी यह रचना भी । आभार

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:31am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी समीक्षात्मक और विस्तृत टिप्पणी पढ़ मन प्रसन्न है, ऐसा लग रहा है कि लघुकथा सार्थक हो गयी, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:30am

प्रिय सोमेश जी, लघुकथा की आत्मा तक आप पहुँच सके और उस पर तार्किक रूप से प्रतिक्रया व्यक्त की इसके लिए बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:28am

आदरणीया डॉ प्राची जी, एक लम्बे अंतराल के पश्चात इस लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी दोनों हर्षकारी हैं, इस उत्साहवर्धन और प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:26am

आदरणीया डिम्पल गौर जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना मुग्धकारी है बहुत बहुत आभार.

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:12am

आदरणीय बागी सर , शानदार लघुकथा हुई है |वास्तविकता  को  उजागर करता करारा व्यंग्य है |सादर अभिनन्दन |

Comment by vandana on February 3, 2015 at 7:17am

बहुत २ बधाई आदरणीय शानदार लघुकथा ....

रिजल्ट्स की मनी बैक गारंटी देने वाले स्कूल प्रोडक्ट तो ऐसी ही रिपोर्ट देंगे

वैसे भी परिणाम आधारित मानसिकता संवेदना को हास्यास्पद ही मानती है लगता है उच्च स्तरीय भावनायें तो साहित्य के पन्नों  पर ही सिमट कर रह जायेंगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 12:56am
मैं चमत्कृत हूँ आदरणीय बागी जी आपकी यह रचना पढ़कर. शैक्षणिक दीनता और चारित्रिक कदर्यता से किस तरह ग्रस्त है आज का हतभाग्य समाज उसका उत्कृष्ट चित्रण है आपकी यह रचना....झकझोर देने वाली है किंतु भाषा के प्रयोग में स्थितप्रज्ञ....यहीं इसकी सार्थकता है....अनेक साधुवाद.

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