बह्र : २१२२ १२१२ २२
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फ़स्ल कम है किसान ज़्यादा हैं
ये ज़मीनें मसान ज़्यादा हैं
टूट जाएँगे मठ पुराने सब
देश में नौजवान ज़्यादा हैं
हर महल की यही कहानी है
द्वार कम नाबदान ज़्यादा हैं
आ गई राजनीति जंगल में
जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं
हाल क्या है वतन का मत पूछो
गाँव कम हैं प्रधान ज़्यादा हैं
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
वाह!! इस बेहद सुन्दर गजल पर आपको बधाई आ.धर्मेन्द्र कुमार जी |
HAAL MAT POOCHH DESH KA SAJJAN.
POOCH MAT HAAL DESH KA SAJJAN
DESH KA HAAL POOCH MAT SAJJAN
AGAR AAPKO THEEK LAGE TO
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय khursheed khairadi साहब।
दाद के लिए शुक्रिया Nirmal Nadeem जी, त्रुटि इंगित करने के लिए आपका आभारी हूँ। इसे जल्द ही ठीक करता हूँ।
धन्यवाद डॉ गोपाल नारायन जी
शुक्रिया Dr. Vijai Shanker जी
वाह! बहुत उम्दा गजल. एक से बढ़कर एक, सामयिक शेर कहें है आदरणीय धर्मेन्द्र जी.
आ गई राजनीति जंगल में
जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं.....इस शेर पर विशेष बधाई
आ गई राजनीति जंगल में
जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं
देश का हाल न पूछो ‘सज्जन’
गाँव कम हैं प्रधान ज़्यादा हैं
आदरणीय धर्मेंदर जी ,उम्दा और कसी हुई ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें ,,,,यह सही मायने में ज़दीद ग़ज़ल है |सादर अभिनन्दन |
Waaaah Waaaah bahut khooob... janab
Maqte ka oola misara bahr me nahi hai ek baar dekh le......Shukriya
आ० धर्म जी
बाकमाल रचना है i हर शेर कसा हुआ i दुरुस्त i वाह i सादर i
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