For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना

२१२२   ११२२   ११२२  २२/११२

वक़्त ये चलता है चलते हुए सूरज की तरह 

तन मेरा जलता है जलते हुए सूरज की तरह 

रोशनी इल्म की दुनिया में तभी बिखरेगी 

तम को निगलोगे निगलते  हुए सूरज की तरह

जुल्फ की छांव तले शाम गुजारो अपनी 

अब्र में छुप के बहलते हुए सूरज की तरह 

राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना 

कितने फिसले हैं फिसलते हुए सूरज की तरह 

अब्र की छांव में हर रोज छुपाकर खुद को 

इक कमर ने छला छलते हुए सूरज की तरह 

चाँदनी शब् में हैं जीने के बसर जो आदी

उनको खलते दिए खलते हुए सूरज की तरह

काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना

चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह

मौलिक व अप्रकाशित  

 

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 12:30pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आदरणीय विजय सर ...आप सबके मार्गदर्शन , हौसला अफजाई और मार्गदर्शन से मुझे रचना धर्मिता की नूतन उर्जा मिल्ती है ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 12:29pm

आदरनीय नूर जी रचना को आपका स्नेह मिला मेर लिए उत्साह्वार्धक है ''सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:22am

 सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:17pm

आ. आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:59pm

वाह वा..बहुत ख़ूब 

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:08pm

काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना

चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह,,,,,,बढिया सन्देश ,,आ. इस खूबसूरत गजल पर आपको आपके अनुज का प्रणाम |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:20pm

आदरणीय श्याम नारयण जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:19pm

आदरणीय गोपाल सर.. प्रयास मैं यू ही करता रहूँगा बस आपका आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहे ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 5:18pm

आदरणीय समर कबीर जी ..मैंने अपने समझ के अनुरूप लिखा ..तकनीकी रूप से ये गलत हो सकता है ..बचपन में सीमेंट की बने स्लोप को हम फिसलनी कहते था ..वाटर पार्क में  भी कुछ ऐसा देखा ..फिसलनी के अर्थ के सन्दर्भ में मैंने फिसलन का उपयोग किया ..आसमान से सूर्या का सागर में गिरना पानी के छोटे से टैंक में जाता मेरा वो सीमेंट का स्लोप लगा ..और मैंने यह लिखा ..अगर गलत है तो मैं इस शेर को हटा दूंगा ..आपके मशविरे और प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर .

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 4:12pm

// काम कुछ करना हो आशू तो यकीनन करना
चीर के तम को निकलते हुए सूरज की तरह // । वाह , बहुत उम्दा पंक्तियाँ , बधाई क़ुबूल करें आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service