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ग़ज़ल :- अब तो माँ भी नहीं दुआ के लिये

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

तोड़ क्या लाऊँ इस बला के लिये
अब तो माँ भी नहीं दुआ के लिये

रह्म शैताँ के पास मिलता नहीं
ये सिफ़त है फ़क़त ख़ुदा के लिये

जान से हाथ धोना पड़ते हैं
बस ये इनआम है वफ़ा के लिये

हक़ अदा कर दिया मुहब्बत का
क्या सज़ा देंगे इस ख़ता के लिये

सब उसे तोता चश्म कहते हैं
है वो मशहूर इस अदा के लिये

मुश्किलें मेरी दूर कर देना
कोई मुश्किल नहीं ख़ुदा के लिये

क़त्ल का मेरे फ़ैसला ये हुवा
सब थे तैयार खूँ बहा के लिये

धमकियाँ देके वो डराते हैं
छोड़ देंगे "समर" सदा के लिये

-----------


तोता चश्म :- तोते की तरह आँखे बदलने वाला

खूँ बहा :- एक रिवाज के मुताबिक़ क़ातिल तय शुदा रक़म क़त्ल होने वाले के घर वालों को दे दे,और वो रक़म लेने को तैयार हो,उस रक़म (दौलत) को खूँ बहा कहते हैं ,और इसे अदा करके क़ातिल मौत की सज़ा से बच जाता है ।

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on October 5, 2015 at 8:14am
मुबारकबाद क़ुबूल करें टंकण त्रुटि के लिए क्षमा । मोबाइल का प्रयोग कर रहे है ।
Comment by Ravi Shukla on October 5, 2015 at 8:11am
आदरणीय समर साहब आदाब उम्दा भाव लिए हुए ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दिली कुबारक बाद क़ुबूल करिये । एक मार्गदर्शन चाहिए जान से हाथ धोना पड़ते है,( धोना पड़ता है/धोने पड़ते है हमें पहली बार में ये समझ आया)। आपने ऐसा लिखा है तो वजह हो सकती है । सादर । मकता बहुत पसंद आया जनाब दो तीन अर्थ लिए है हमने इससे । शानदार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 9:41pm

आदरणीय समर भाई , हमेशा की तरह बहुत बेहतरीन गज़ल कही है आपने , दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥

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