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आदरणीय समर कबीर जी, पुनः मार्गदर्शन निवेदित है
आपका मिसरा है-
अँधेरे में/ गिरी सुई /भी हम तो ढूँ / ढ लेते थे
1222/ 1212/1222/1222
इसलिए मुझे लगा कि मिसरा इस तरह होगा -
अँधेरे में/ गिरी सूई /भी हम तो ढूँ / ढ लेते थे
1222/ 1222/1222/1222
किन्तु अब आपने लिखा है कि
//ये टंकण त्रुटि नहीं है//
मैं बात समझ नहीं पा रहा हूँ अतः मार्गदर्शन निवेदित है.
सादर
आदरणीय समर कबीर साहब बहुत सुन्दर ग़ज़ल पेश करी आपने शेर दर शेर दाद कुबूल करें
ये शेर हमें बहुत अच्छा लगा
ग़ज़ल कहने का मौक़ा ख़ूब हम को मिल गया यारों
नहीं था घर में कोई सिर्फ़ तन्हाई का आलम था । सादर
आदरणीय समर कबीर जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है
सुई----सूई संभवतः टंकण त्रुटी
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