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ग़ज़ल...बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी

121 22 121 22 121 22 121 22
बशर परेशां दरकतीं राहें पहाड़ सी ज़िन्दगी हुई है
कदम जहाँ सकपका के रक्खा वहीँ ज़मीं दलदली हुई है

बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी सा कोई मक़ाम दे दो
कि ये उदासी मेरे लवों पे कई दिनों से बसी हुई है

जिन्हें संभाला जिन्हें सँवारा वो ख्वाब जाने क्यों रूठ बैठे
सुबह से पलकों पे ओस आई औ आँख भी शबनमी हुई है

कफ़स से तो हम निकाल लाये मगर छुपाया ज़माने भर से
कि शूल बन कर वही सदा अब ह्रदय के अन्दर चुभी हुई है

अज़ब तमाशा है तेरा मौला क्या खूब तेरी है रहनुमाई
वहीँ वहीँ पे गिरी बिजुरिया जहाँ जरा रौशनी हुई है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 10:08pm
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एक बात और जानना चाहता हूँ..आदरणीय मिथिलेश जी आदरणीय समर कबीर जी एवं आदरणीय गिरिराज जी..'दरकतीं'शब्द का मात्रा भार क्या होगा?मैंने यहाँ 122 लिया है..लेकिन मेरे जानने वाले एक अग्रज ने मुझे बताया की इसका मात्रा भर 212 होगा..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 10:00pm
जी आदरणीय मिथिलेश जी क्यों न इसे 'हसीन कोई मक़ाम दे दो' कर दिया जाये..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 9:52pm

बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी (नहीं हसीं हसीन वाला)सा कोई मक़ाम दे दो

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 2:19pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सुन्दर एवं मनोहारी शब्दों में उत्साहवर्धन और रचना पटल पे आपकी गरिमामई उपस्थिति के लिए आपको शत शत नमन...आपने जो बात शुरू की है उससे निश्चय ही बहुत कुछ सीखने को मिलेगा..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 11:32am

आदरणीय समर भाई ... आपको याद होगा एक बार फोन मे चर्चा किया था कि , वाब ए अत्फ और इज़ाफत की मात्रा लेने के नियम एक बार मंच मे ज़रूअर साझा कीजियेगा -- अभी ऐसा वक़्त आया लगता है -- जिस न्ज़्म की बात मै कर रहा था --

आदरणीय  वो ये है
12  12     12    12

ज़रा सुनो तो शेख़ जी

12    12      12   12

तुम्हारा नुक़्ता ए नज़र      --  यहाँ      ता की मात्रा गिरा भी गई है और  हर्फे इज़ाफत  ए  की मात्रा उठाई भी गई है

1212        12   12 

दुरुस्त हो तो हो मगर

12  12      12   12

अभी तो मै जवान हूँ 

आदरणीय  समर भाई जी अगर संभव हो तो  एक नियम के रूप मे प्रतिक्रिया देने की कृपा करें , ताकि भविष्य मे सदस्य इसका लाभ ले सकें .... सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 11:24am

आदरनीय बृजेश भाई , कठिन बहर मे खूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 8, 2017 at 9:02am
रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी...
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:58pm

 गज़ल अच्छी लगी... ख्याल बेहतरीन हैं,  बस आप लिखते जाईए। दिल से बधाई।

प्रतिक्रियाओं से सीखने को भी बहुत मिला।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2017 at 10:00pm
जी आदरणीय समर कबीर जी कोशिश तो यही होती है...
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2017 at 9:57pm
हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी ..

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