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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६७

1212 1122 1212 22

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हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है
बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१

चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में
कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२ 


फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में
हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३ 

मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने

कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है //४ 

बता ऐ ताइरे खिरमन, तू घर बसायेगा?
हमारे हिस्से में इक ख़ुश्क डाली आई है //५ 

जवाब कुछ नहीं हमको मिला तेरे दर से  
नज़र जो लौट के आई सवाली आई है //६ 

हुआ बहीज मैं कुछ यूँ कि तुझको छूने की
मेरे दिमाग़ में फ़ित्ना ख़याली आई है //७ 

बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़बान का तेरी
मेरे सवाल के बदले जो ग़ाली आई है //८

नहीं है राज़ कोई नौकरी तो हैं बैठे
पुराना काम है जिसपे बहाली आई है //9

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

अमा- अन्धता, गहरा बादल; रुदाली- दूसरों के मातम में पैसे लेकर रुदन करने वाली औरतें; ताइरे खिरमन- खलिहानों पे पलने वाला पक्षी; बहीज-आनंदित, हर्षित; फ़ितना ख्याली- गड़बड़ करने का ख़्याल; बहाली-पुनर्नियुक्ति

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Comment by Ajay Tiwari on November 10, 2018 at 7:14am

आदरणीय राज़ साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

मनाएं जश्न भी क्या हम अँधेरी रातों का 
नहीं है पास में बाती, दिया भी ख़ाली है???  रदीफ़ और काफ़िया?  

Comment by राज़ नवादवी on November 9, 2018 at 9:07am

एक शेर जोड़ा किया है:

--------------------------

'बुरा न मानूँ मैं शीरीं ज़ुबान के मुँह से
मेरे सवाल के बदले जो ग़ाली आई है'
सादर. 
Comment by राज़ नवादवी on November 8, 2018 at 7:34pm

आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 8, 2018 at 6:56pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

Comment by राज़ नवादवी on November 8, 2018 at 4:23pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर

Comment by Neelam Upadhyaya on November 8, 2018 at 3:38pm

आदरणीय दीवाली पर भी उजालों से खाली रात का दर्द छलकाती अच्छी पेशकश। बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

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